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पांच प्रतर के अन्दर अनुक्रम से प्रत्येक पंक्ति में इक्तीस, तीस, उन्तीस, अट्ठाईस और सत्ताईस विमान होते है । अब प्रथम प्रतर की एक-एक पंक्ति में त्रिकोन और दूसरे में दस-दस विमान है और पंक्ति गत कुल विमान १२४ होते हैं। (२४६-२५१)
वृतास्त्र्यस्राश्चतुरस्रा, द्वितीयप्रतरे दशं । प्रति पङ्क्तयत्र सर्वे च, विशं शतंमुदीरिताः ॥२५२ ॥
दूसरे प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में गोलाकार-त्रिकोण और चोरस विमान दसदस होते हैं और कुल पंक्ति में १२० विमान होते हैं । (२५२)
तृतीये त्रिचतुःकोणा, दश वृत्ता नवेति च । सर्वे विमानाः पातेंया, भवन्ति षोडशं शतम् ।।२५३॥
तीसरे प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में त्रिकोन और चोरस १०, १०, विमान है और गोल विमान नौ है, सर्व पंक्ति के विमान ११६ होते है । (२५३)
• वृत्ताश्च चतुरस्त्रार्थ, तुर्येनव नव स्मृताः ।
दश त्रिकोणाः सर्वे च पाङ्क्तेया द्वादशं शतम् ।।२५४॥
चौथे प्रतर के प्रत्येक पंक्ति में गोल ओर चौरस विमान नौ-नौ है और त्रिकोन विमान दस है, सब मिलाकर पंक्तिगत विमान ११२ होते हैं । (२५४).
पञ्चमे च नव नव, त्रिचतुः कोण वृत्तकाः ।
अप्टोत्तरं शतं सर्वे, चात्र पङ्क्ति विमानकाः ॥२५५॥
पांचवे प्रतर के प्रत्येक पंक्ति में तीनों प्रकार के नौ, नौ विमान है और पंक्ति गत कुल मिलाकर विमान १०८ होते हैं । ( २५५) ____ एवं पञ्चेन्द्रकक्षेपे, सर्वेऽऋ पंतिवृत्तकाः ।
विमानास्रिनवत्याढयं, शतं लान्तकताविषे ।।२५६॥
इस तरह से लांतक देवलोक के पांचों प्रतर के इन्द्रक विमान सहित गोल विमान कुल मिलाकर १६३ होते हैं । (२५६)
पंक्तित्र्यस्त्राणां शते द्वे द्विनवत्यधिकं शतम् । . स्यात्पडक्ति चतुस्राणामेवं च सर्वसंख्यया ।।२५७॥