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________________ (४६०) अव्याबाधाश्चैषु देवाः, पुरुषस्याक्षिपक्षमणि । दिव्यं द्वात्रिंशत्प्रकारं, प्रादुष्कुर्वन्ति ताण्डवम् ॥२४१॥ तथापि पुरुषास्यास्य, बाधाकोऽपि न जायते । एवं रूपा शक्तिरेपां, पत्रचमाने प्रकीर्तिता ॥२४२॥ इन लोकतांत्रिक देवों में अव्याध नाम के देव पुरुष की आंख की बरौनी ऊपर बत्तीस बद्ध नाटक प्रकट कर सकते हैं और फिर भी पुरुष को कुछ विघ्न बाधा नहीं होती है इस तरह की शक्ति श्री भगवती सूत्र के चोदहवें शतक के आठवें उद्देश्य में कहा है । (२४१-२४२) लौकान्तिक विमानेषु, देवानामांष्ट वार्द्धयः । .. स्थितिरुक्ता जिनरेते, पुण्यात्मानः शुभाशयाः ।।२४३॥ एकावताराः सिद्धयन्ति, भवे भाविनि निश्चितम् । अष्टावतारा अप्येते, निरुपिता मतांत्तरे ॥२४४॥ श्री जिनेश्वर भगवन्तों ने इस लोकांतिक विमान में रहे देवों की स्थिति आठ सागरोपम की कही है ये लोकांतिक देवता पुण्यशाली होते है, शुभाशय वाले होते हैं और एकावतारी होते हैं और आने वाले जन्म में निश्चित ही मोक्ष में जानेवाले हैं, मतान्तर में आठ जन्म में जाने वाले कहा है । (२४३-२४४) ____ तन्मतद्वयं चैवं -लोकान्ते लोकाग्र लक्षणे सिद्धि स्थाने भवाः लोकान्तिका:भाविनीभूतवदुपचारन्यांदेन एवंव्यपदेशःअन्यथा तेकष्णराजीय मध्य वर्त्तिनं: लोकान्ते भावित्वं तेषामनन्तरभवे एव सिद्धि गमना दिति स्थानङ्गवृत्तौ स्थान के ___ श्रीढाणांग सूत्र की वृत्ति के नौवे स्थान में कहा है कि लोकान्ते अर्थात लोक के अग्रभाग स्वरुप सिद्धि स्थान में हुए लोकान्तिक कहलाता है । अतः भावि में भूतकाल का उपचार करके इस तरह से कहलाता है । शेष तो वे कृष्णराजी के मध्य, में रहता है और लोकांत में होना अगले जन्म के अन्दर मोक्ष में जाने के होने से वह किस तरह घटता है? इससे भावि का भूतकाल में उपचार से किया गया है । इस तरह समझना ।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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