SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८६ ) श्याम पुद्गल की श्रेणि होनेसे प्रथम नाम कृष्णराजी कहलाता है । काले बादल रेखा समान होने से मेघराजी कहलाता है, छठी और सातवीं मघा-मघावती नरक समान अंधकार होने से मघा और मघावती कहलाती है वास शब्द से घुमावदार वायु समझना उसके समान अंधरी और भंयकर होने से वह वातपरिध और वातप्रतिक्षोभ कहलाता है । सातवीं-आठवीं इस तरह देव परिध और प्रतिक्षोभ नाम का पूर्व के तमस्काय के समान समझ लेना । (२१४-२१६) अथासां कृष्णराजी नामन्तरेषु किलाष्टसु ।' लौकान्तिकविमानानि, निर्दिष्टान्तष्टपारगैः ॥ २१७॥ अब इस कृष्णराजी के आठ प्रतर में आठ लोकांतिक विमान है । इस तरह श्री तीर्थंकर परमात्मा ने कहा है । (२१७) तत्राभ्यन्तरयोः प्राच्योदीच्ययोरन्तरे तयोः T विमानमर्चि प्रथमंः चकास्ति प्रचुर प्रभम् ॥२१८॥ उसमें अभ्यंतर पूर्व और उत्तर दिशा की कृष्णराजी बीच में अत्यन्त तेजस्वी अर्चिनाम का विमान प्रकाशमय है । (२१८) अन्तरे प्राच्ययोरेव, बाह्याभ्यन्तरयोरथ । द्वितीयमचिंर्मालीति, विमानं परिकीर्त्तितम् ॥ २१६ ॥ पूर्व दिशा की ही वाह्य और अभ्यंतर कृष्णराजी के बीच में दूसरा अर्चिमाली नाम का विमान कहा है । (२१६) तृतीयमभ्यन्तरयोरन्तरे प्राच्ययाम्ययोः वैरोचनाभिदं प्रोक्तं विमानं मानवोत्तमैः ॥ २२० ॥ पूर्व और दक्षिण दिशा की अभ्यन्तर कृष्णराजी के बीच में वैराचन नाम का विमान श्री जिनेश्वर ने कहा है । (२२०) बाह्याभ्यान्तरयोरेवान्तरेऽथ दाक्षिणात्ययोः । प्रभंकरभिदं तुर्यं विमानमुदितं जिनैः ॥२२१॥ दक्षिण दिशा की बाह्य और अभ्यन्तर कृष्णराजी के बीच में चौथे प्रभंकर नाम का विमान श्री जिनेश्वरों ने कहा है । (२२१)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy