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श्याम पुद्गल की श्रेणि होनेसे प्रथम नाम कृष्णराजी कहलाता है । काले बादल रेखा समान होने से मेघराजी कहलाता है, छठी और सातवीं मघा-मघावती नरक समान अंधकार होने से मघा और मघावती कहलाती है वास शब्द से घुमावदार वायु समझना उसके समान अंधरी और भंयकर होने से वह वातपरिध और वातप्रतिक्षोभ कहलाता है । सातवीं-आठवीं इस तरह देव परिध और प्रतिक्षोभ नाम का पूर्व के तमस्काय के समान समझ लेना । (२१४-२१६)
अथासां कृष्णराजी नामन्तरेषु किलाष्टसु ।' लौकान्तिकविमानानि, निर्दिष्टान्तष्टपारगैः ॥ २१७॥
अब इस कृष्णराजी के आठ प्रतर में आठ लोकांतिक विमान है । इस तरह श्री तीर्थंकर परमात्मा ने कहा है । (२१७)
तत्राभ्यन्तरयोः प्राच्योदीच्ययोरन्तरे तयोः T
विमानमर्चि प्रथमंः चकास्ति प्रचुर प्रभम् ॥२१८॥
उसमें अभ्यंतर पूर्व और उत्तर दिशा की कृष्णराजी बीच में अत्यन्त तेजस्वी अर्चिनाम का विमान प्रकाशमय है । (२१८)
अन्तरे प्राच्ययोरेव, बाह्याभ्यन्तरयोरथ । द्वितीयमचिंर्मालीति, विमानं परिकीर्त्तितम् ॥ २१६ ॥
पूर्व दिशा की ही वाह्य और अभ्यंतर कृष्णराजी के बीच में दूसरा अर्चिमाली नाम का विमान कहा है । (२१६)
तृतीयमभ्यन्तरयोरन्तरे प्राच्ययाम्ययोः
वैरोचनाभिदं प्रोक्तं विमानं मानवोत्तमैः ॥ २२० ॥
पूर्व और दक्षिण दिशा की अभ्यन्तर कृष्णराजी के बीच में वैराचन नाम का विमान श्री जिनेश्वर ने कहा है । (२२०)
बाह्याभ्यान्तरयोरेवान्तरेऽथ दाक्षिणात्ययोः ।
प्रभंकरभिदं तुर्यं विमानमुदितं जिनैः ॥२२१॥
दक्षिण दिशा की बाह्य और अभ्यन्तर कृष्णराजी के बीच में चौथे प्रभंकर नाम का विमान श्री जिनेश्वरों ने कहा है । (२२१)