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________________ (४८१) तथाहुः - इहंन बादरास्तेजस्कायिका मन्तव्याः, इहैव तेषां निषेत्स्यमान त्वात्, किन्तु देवप्रभावजनिता भास्वरा पुद्गला इति भगवती वृत्तौ । श्री भगवती सूत्र की टीका में कहा है कि - यह देदीप्यमान पुद्गल बादर तेउकाय नहीं समझना । क्योंकि आगे उसका निषेध करने में आया है इसलिए यह तेजस्वी पुद्गल देवी प्रभाव से उत्पन्न हुआ समझना । तथा नात्र तमस्काये, देशग्रामपुरादिकम् । नाप्यत्र चन्द्रचण्डांशु ग्रहनक्षत्र तारकाः ॥१८५॥ येऽप्यत्रासन्न चन्द्रार्क किरणास्तेऽपि तामसैः । मलीमसा असत्प्राया, दुर्जन सद्गुणा इव ॥१८६॥ • तथा इस तमस्काय में देशं, गांव पुर आदि नहीं है और चन्द्र सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारा भी नहीं है और जो चन्द्र सूर्य के किरण यहां आते हैं वे भी इस अंधकार से दुर्जन में रहे सद्गुणों के समान निस्तेज और नहींवत् बन जाते हैं । (१८५-१८६) अत एवाति कृष्णोऽयमगाधश्च भयङ्करः । रौद्यातिरेकात्पुलको दमालोकितः सुजेत् . ॥१८॥ आस्तामन्यः सुरोऽप्येनं, पश्यन्नादौ प्रकम्पते । ततः स्वस्थीभूय शीघगतिरेनमतिव्रजेत् ॥१८॥ इससे ही अत्यन्त काला, अगाध, भयंकर यह तमस्काय अति रौद्र होने से देखने मात्र से ही रोम खड़े कर देता है, अन्य की बात तो जाने दो देव भी इससे प्रथम बार देखकर तो कम्पायमान हो उठता है फिर स्वस्थ होकर शीघ्र गति से इसे पार कर देता है । (१८७-१८८) तम १ चैव तमस्कायोऽ २ न्धकारः ३स महादिकः ४ । लोकान्धकारः ५ स्याल्लोक तमित्रं६ देवपूर्वकाः ।।१८६॥ अन्धकार ७ स्वमित्रं ८ चारण्यं च व्यूह १० एवं च । परिघश्च ११ प्रतिक्षोभो १२ ऽरुणोदो वारिध स्तथा १३ ॥१६०॥ त्रयोदशास्य नामानि, कथितांनि जिनैः श्रुते । तत्र लोकेऽद्वितीयत्वाल्लोकान्धकार उच्यते ॥१६१॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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