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(४७६) साढ़े आठ सागरोपम+चार पल्योपम के आयुष्य वाले छ: हजार मध्य पर्षदा से युक्त इन्द्र महाराज होते हैं । (१५३)
बाह्य पर्षदि देवानां सहस्त्रैरष्टभिवतः । पल्योपमत्रयोपेतसार्द्धाष्टवार्द्धि जीविभिः ॥१५४॥ त्रायस्त्रिशैलॊकपलिपालैर्मित्रमन्त्रि पुरोहितैः । . एकैकस्यां दिशिषष्टया सहस्त्रैरात्मा रक्षकैः ।
अनीकैः सप्तभिः सप्तभिः सेव्योऽनीक नायकैः ।।१५६॥ ...
साढ़े आठ सागरोपम+तीन पल्योपम के आयुष्य वाले आठ हजार बाह्म पर्षदा के देवताओं से यह इन्द्र महाराज घिरा हुआ रहता है । त्रायस्त्रिंश देवलोक पाल मित्र देव, पुरोहित देवं, यान विमान के अधिकारी देव, वाहनादि एक-एक दिशा में साठ हजार आत्म रक्षक देवता सात सेना और सात के सेनाधिपति से सेवा होते रहता है । (१५४-१५६)
अन्येषामप्यनेकेषां देवानां ब्रह्मवासिनाम् । विमानावासलक्षाणां चाष्टानामप्यधीश्वरः ॥१५७॥
अन्य भी अनेक बह्मलोक में रहने वाले देवताओं के तथा आठ लाख विमान के अधीश्वर रहते हैं । (१५७)
. जम्बूद्वीपानष्ट पूर्णान् रूपैर्नव्यैर्विकुर्वितेः ।
क्षमः पूरयितुं तिर्यगसंख्यद्वीपवारिधीन ।।१५८॥
यह ब्रह्मलोकेन्द्र अपने द्वारा बनाये रूपों से आठ जम्बूद्वीप को भने में समर्थ है और तिर्छा असंख्य द्वीप समुद्रों को अपने रुप से भरने में समर्थ होता है। (१५८)
कृतार्हर्चनः प्राग्वद्धर्मस्थिति विशारदः । साम्राज्यं शास्ति संपूर्णदशसागरजीवितः ॥१५६॥
पूर्व कहे वर्णन के अनुसार श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा करते धर्म स्थिति में विशारद सम्पूर्ण दस सागरोपम के आयुष्य वाला ब्रह्ममेन्द्र साम्राज्य चलाता है । (१५६)