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________________ (४७३) जघन्यतोऽप्पमी सप्तसागरस्थितयः सुराः । उत्कर्षणः पुनः पूर्णदशाम्योनिधि जीविनः ॥१३४॥ इस देवलोक की जघन्य स्थिति सात सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की होती है । (१३४) प्रथम प्रतरे त्वत्र, नाकिनां परमा स्थितिः । सार्द्धा सप्तार्णवास्ते च, द्वितीयेऽष्टौ प्रकीर्तिताः ॥१३५॥ तृतीयेऽष्टाब्धयः साद्धचितुर्थे च नवैव ते । पञ्चमे नव सार्दाश्च, षष्ठे पूर्णादशाब्धयः ॥१३६॥ 'सर्वत्रापि जंघन्या तु सप्तैव जलराशयः । तथा सप्तार्णवायुष्का येऽत्र ते षट् करोच्छ्रिताः ॥ १३७॥ प्रथम प्रतर की उत्कृष्ट स्थिति साढ़े सात सागरोपम है । दूसरे प्रतर की उत्कृष्ट स्थिति आठ सागरोपम की है तीसरे प्रतर की उत्कृष्ट स्थिति साढ़े आठ सागरोपम है, चौथे प्रतर की उत्कृष्ट स्थिंति नौ सागरोपम की है पांचवे प्रतर की उत्कृष्ट स्थिति साढे नौ सागरोपम की है, छठे प्रतर की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपरम की है । और सर्व प्रतर में जघन्य स्थिति सात सागरोपम ही होती है । (१३५-१३७) अष्टांकू पारायुषां तु देहयानं भवेदिह । कराः पञ्चैकांदशांशैः षड्भिरभ्यधिकाअथ ॥१३८॥ नवाब्धिजीविनां पञ्च कराः पञ्चलवाधिकाः । दशार्णवायुषां पञ्च कराश्चतुर्लवाधिकाः ॥१३६।। सात सामरोपम की आयुष्य वाले देवों की ऊंचाई छः हाथ होती है, आठ . सागरोपम के आयुष्य वाले देवों की ऊंचाई ५ हाथ ६/११ होती है । नौ सागरोपम के आयुष्य वाले देवों की ऊंचाई ५ हाथ ५/११ होता है । और ८ सागरोपम आयुष्य वाले देवों की ऊंचाई ५ हाथ ४/११ होती है । (१३८-१३६) स्यादेतेषां निज निज स्थिति सागर संमितैः । भुक्तिर्वर्षाणां सहस्त्रैः पौरूच्छ्वास ईरितः ।।१४०॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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