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________________ (४७२) इस तरह से पांचवे देवलोक में चार लाख विमान होते हैं जो कि धनवात पर प्रतिष्ठित हुए हैं। (१२६) प्रासादानामुच्चतैषु, शतानि सप्त निश्चितम् । पृथ्वी पिण्डो योजनानां शतानि पञ्चविंशतिः ॥१३०॥ इस देवलोक के प्रासाद सात सौ योजन ऊँचे है और उसका पृथ्वी पिंड पच्चीस सौ योजन मोटा होता है । (१३०) भवन्ति वर्णतश्चामी, शुक्ल पीतारूणप्रभाः । . ज्ञेयं शेषमशेषं तु स्वरुपमुक्तया दिशा ॥१३१॥ इस प्रासाद का वर्ण, श्वेत, लाल और पीला होता है शेष प्रत्येक बात पूर्व देवलोक के समान समझ लेना चाहिए । (१३१) उत्पद्यन्तेऽमीषु देवतया सुकृत शालिनः । ... कतार्हदर्चनाः प्राग्वदिव्यसौख्यानि भुञ्जते ॥१३२॥ . इस देवलोक के अन्दर पूर्व जन्म में सुकृत करके आए जीव उत्पन्न होते हैं और श्री अरिहंत परमात्मा की पूजा करके पूर्व में जैसा वर्णन किया है उसके अनुसार सुख का अनुभव करता है । (१३२) मधुकपुष्पवर्णाङ्ग प्रभा प्राग्भारभासुराः । छागचिह्नाढय मुकुटाः पद्मलेश्याञ्चिताशया ॥१३३॥ ये देवता महुये के पुष्प समान वर्ण वाले हैं, प्रभा के समूह से देदीप्यमान है इस तरह मुकुट में बकरे का चिन्ह होता है और उनके मनो के परिणाम पद्मलेश्यायुक्त है (१३३) तथाह जीवभिगमः- 'बंभलोगलंतगादेवाआलमहूयपुष्प वन्नाया' यत्तु संग्रहण्यां -एते पद्म केसरगौरा उक्ताः 'तत्पक्कधुक पुष्पपद्मकेसरयोर्वर्णे न विशेष इति तद्वृत्ताविति ध्येयं ॥ श्री जीवाभिगमसूत्र में कहा है कि ब्रह्मलोक और लांतक देवलोक के देवों का रंग ताजे महुये के पुष्प समान होता है संग्रहणीय मैं जो पद्म और केसर सद्दश लाल कहा है। वह पक्के हुए महुये के पुष्प और पद्म केशर के वर्ण में कुछ अंतर नहीं है। इस तरह संग्रहणी की टीका में कहा है ।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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