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________________ (४७१) सर्वे शतं च षत्रिशं पञ्चमें प्रतरे पुनः । एकादशमितास्त्रैधा, द्वात्रिशं च शतं समे ॥१२३॥ चौथे प्रतर में गोल विमान बारह है त्रिकोन और चोरस विमान ग्यारह-ग्यारह है, कुल पंक्तिगत विमान एक सौ छत्तीस है । पाँचवें प्रतर में तीनों प्रकार के ग्यारहग्यारह विमान होते हैं, कुल मिलाकर पंक्तिगत विमान एक सौ बत्तीस (१३२) होते हैं । (१२३) षष्ठेऽथप्रतरे वृत्ताः, प्रतिपङक्ते दशापरे । द्विधाप्येकादश पृथगष्टाविशं शतं समे ॥१२४॥ छठे प्रतर में वृत विमान दस तथा त्रिकोन और चोरस विमान ग्यारह-ग्यारह है, कुल विमान एक सौ अट्ठाईस होते हैं । (१२४) चतुःसप्ततियुक्ते द्वे, शते च पंक्ति वृत्तकाः । . भवन्त्येवमिन्द्रकाणां, षण्णां संयोजनादिह ॥१२५॥ पतित्र्यस्राश्च चतुरशीतियुक्तं शतद्वयम् । द्वे शते पङ्क्तिचतुरस्रकाः षड्सप्ततिस्पृशी ॥१२६॥ चतुस्त्रिंशाष्टशत्येवं, पाक्तेयाः सर्वसंख्यया । निर्दिष्टाः पञ्चमस्वर्गे पञ्चमज्ञानचारूभिः ॥१२७॥ प्रत्येक प्रतर में इन्द्रक विमान सहित दो सौ चौहत्तर (२७४) गोल विमान है, दो सौ चौरासी (२८४) त्रिकोन विमान है, दो सौ छिहत्तर (२७६) चोरस विमान है । सब मिलाकर पाँचवें स्वर्ग में पंक्तिगत विमान कुल संख्या आठ सौ चौंतीस (८३४) केवल ज्ञानी भगवन्तों ने कहा है । (१२५-१२७) . लक्षास्तिस्रः सद्स्त्राणां, नावतिश्च नवाधिका । शतमेकं सषट्षष्टिरत्र पुष्पावकीर्णकाः ॥१२८ ॥ इस ब्रह्म लोक में तीन लाख, निन्यानवें हजार, एक सौ छयासठ (३,६६,१६६) पुष्पावकीर्णक विमान होते हैं । (१२८) विमाणानां च लक्षाणि, चत्वारि सर्व संख्यया । निर्दिष्टा ब्रह्मलोकेऽमी, धनवाते प्रतिष्ठिताः ॥१२६॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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