SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६८) .. माहेन्द्र देवलोकेऽपि, प्रतरे द्वादशे स्थिताः । पञ्चावतंसका अङ्कादय ईशाननाकवत् ॥१०३॥ चौथे इन्द्र का अधिकार कहते हैं - माहेन्द्र देवलोक के अन्दर बारह प्रतर में ईशान देवलोक के समान अंकावतंसक आदि पांच विमान होते हैं । (१०३) मध्य स्थितेऽथ माहेन्द्रावतंसक विमानके । उत्पद्योत्पादशय्यायां, प्राग्वत्कृतजिनार्चनः ॥१०४॥ .. सिंहासन समासीनः, पीनश्रीर्भाग्यभासुरः । . सामानिकानां सप्तत्या सहस्त्रैः परितो वृतः ॥१०॥... सप्त षट्पञ्चपल्याढयां सार्कीर्णवचतुष्टयीम् । .. यथाक्रमं विक्रमाङ्यैर्दधद्भिः स्थितिमायुषः ॥१०६॥ . षडिभरान्तरपार्षद्यैरष्टाभिर्मध्यपार्षदैः । दशभिः बाह्यपार्षद्यैः, सेव्यः सुरसहस्रकैः ॥१०७॥ चतुर्भिश्च लौकपालैः सप्तभिः सैन्यनायकैः । सैन्यैश्च सप्तभिः सेवाचतुरैरनुशीलितः ॥१०८॥ प्राच्यादिदिक्षु प्रत्येकमुदण्डायुधपाणिभिः । जुष्टः सहस्रैः सप्तत्या, निर्जरैरात्मरक्षकैः ॥१०६ ॥ जम्बूद्वीपान् सातिरेकान्, चतुरश्च विकुर्वितैः । . रूपैर्भत्तु क्षमस्तिर्यगसंख्यद्वीपवारिधीन् ॥११॥ विमानावासलक्षाणामिहाष्टानामधीश्वरः । देवानां भूयसामेवं माहेन्द्रस्वर्गवासिनाम् ॥११॥ ईशानोऽसौ विजयते द्विव्यनाटकदत्तहत् । माहेन्द्रेन्द्रः सातिरेक सप्त सागर जीवितः ॥११२॥ नवभिकुलकं । उसके मध्य में रहे माहेन्द्रवतंसक विमान के अन्दर उपपात शय्या में उत्पन्न होकर पूर्व के समान श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा करते हैं, उसके बाद सत्तर हजार पराक्रमी सामानिक देवों से घिरे हुए साढ़े चार सागरोपम + सात पल्योपम की स्थिति वाले छः हजार अभ्यतंर पाषर्द देव साढ़े चार सागरोपम + छह पल्योपम की स्थिति
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy