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इस देवलोक में छ: प्रतर है, प्रत्येक प्रतर में एक-एक इन्द्र विमान है.उनके नाम अनुक्रम से १- अंजन, २-वरमाल, ३- रिष्ट, ४-देव, ५-सोम, ६-मंगल है
और उसकी चारों दिशा में पंक्ति बद्ध विमान होते हैं और पूर्व के समान उसके बीच में पुष्पावकीर्णक विमान है । (११६-११७)
सप्तषट् पंचयुक्त्रिंशत्, चतुस्त्रिद्वयधिका च सा । प्रति पंक्ति विमानाः स्युः, प्रतरेषु क्रमादिह ॥११८॥...
छः प्रतरों में से प्रथम प्रतर की प्रत्येक पंक्ति - चार पंक्ति में अड़तीसअड़तीस विमान होते हैं, दूसरे प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में छत्तीस-छत्तीस, तीसरे प्रतर में पैंतीस-पैंतीस, चौथे प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में चौंतीस-चौंतीस, पांचवें प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में तेतीस-तेतीस तथा छठे प्रतर की प्रत्येक पंक्ति में बत्तीस-बत्तीस विमान होते हैं। (११८)
प्रथमप्रतरे तत्र, प्रतिपति विमानकाः । त्रयोदश त्रिकोणाः स्युद्वादशा द्वादशापरे ॥११६॥ अष्टचत्वारिंशमेवं, पाक्तेयानाशतं मतम् । त्रैधा अपि द्वितीयेऽस्मिन्, द्वादश द्वादशोदिता ॥१२०॥
उसमें प्रथम प्रतर के प्रत्येक पंक्ति में तेरह त्रिकोन विमान और गोल तथा चोरस १२, १२ विमान होते हैं इस तरह प्रथम प्रतर में कुल मिलाकर विमान एक सौ अड़तालीस (१४८) होते हैं । (११६-१२०) .
सर्वे शतं चतुश्चत्वारिशं चाथ तृतीयके । वृत्ता एकादश द्वैधा, द्वादश द्वादशापरे ॥१२१॥
दूसरे प्रतर में तीन प्रकार के विमान की संख्या बारह-बारह है अत: चार पक्ति के कुल विमान एक सौ चवालीस (१४४) होते हैं । (१२१)
चत्वारिशं शतं सर्वे, प्रतरेऽथ तुरीयके . ।
वृत्ता द्वादश किंचैकादश त्रिचतुरस्त्रकाः ॥१२२॥ .
तीसरे प्रतर में गोल, विमान ग्यारह है त्रिकोन और चोरस विमान बारह-बारह है कुल मिलाकर एक सौ चालीस (१४०) होते हैं । (१२२).