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त्रायस्त्रिशैर्मन्त्रिभिश्च लोकपालैश्च पूर्ववत् । आश्रितः सप्तभिः सैन्यैः सैन्याधिपैश्च सप्तभिः ॥५॥ द्विसप्तया सहस्रैश्च, पृथक् पृथक् चतुर्दिशम् । सेवितः सज्जकवचैः शस्त्रोग्रैरात्मरक्षकैः ॥८६॥ विमानावासलक्षाणां, द्वादशानामधीश्वरः । तद्वासिनां च देवानामसंख्यानां महौजसाम् ॥८७॥ सदैश्चर्यमनुभवत्युदात्तपुण्यवंभवः ।।
दिव्य शक्ति संप्रयुक्त पटुताटकदत्तदृक् ॥८६॥ अष्टभिकुलकं। . उसके बाद बहत्तर हजार (७२०००) सामानिक देवताओं से घिरे हुए, साढ़े चार सागरोपम और पाँच पल्योपम के आयुष्य वाले आठ हजार अंत पर्षदा के देव, साढे चार सागरोपम और चार पल्योपम के आयुष्य वाले दस हजार, मध्यम् पर्षदा के देव, साढे चार सागरोपम और तीन पल्योपम के आयुष्य वाले बाह्य पर्षदा के बारह हजार देवताओं से घिरे हुए तथा सौधर्मेन्द्र के समान त्रायस्त्रिंश देव, मंत्री देव लोकपाल, सात सैन्य सात सेनाधिपतियों से आश्रित बने चार दिशा में बख्तर धारण किए अति उग्र खुले शस्त्रों को धारण करने वाले, खडे रहे बहत्तर हजार आत्मरक्षक देवताओं से रक्षण होते, बारह लाख विमान तथा उन विमानों में निवास करने वाले, दिव्य शक्ति व्यक्तियों द्वारा रजुयात होते नाटक को देखने के लिए दृष्टि स्थापित करने वाले श्री सनत्कुमारेन्द्र श्रेष्ठ शृंगार को धारण करके सिंहासन पर विराजमान होकर चिरकाल तक ऐश्वर्थ का अनुभव करते हैं । (८१-८८) . अस्य यानविमानं च, भवेत्सौमनसाभिधम् ।
देवः सौमनसाख्यश्च, नियुक्तस्ताद्विकुर्वणे ॥८६॥
इस सनत्कुमारेन्द्र को बाहर जाने के लिए विमान सौमनस नामका है और सोमनस नाम के देव उसकी रचना करते हैं । (८६)
निज वैक्रियलब्ध्या तु, देव रूपै विकुर्वितैः । जम्बूद्वीपांश्चतुरोऽयं पूर्णान् पूरयितुं क्षमः ॥६०॥