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जब उत्कृष्ट आंतरा सनत्कुमार देवलोक में नौ दिन और २० मुहुर्त का है ' और माहेन्द्र देवलोक में १२ दिन और १० मुहुर्त का होता है । (७६) .
सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गयोरमृताशिनाम् । उक्तं स्वरुपमनयोः, स्वामिनोस्तदथोच्यते ॥७॥
सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के देवों के स्वरुप का वर्णन किया । अब उनके इन्द्रों का वर्णन करने में आता है । (७७)
प्रतरे द्वादशे तत्र, सनत्कु मारताविषे । सौधर्मवदशोकाद्याः, प्राच्यादिष्ववतंसकाः ॥८॥
सनत्कुमार देवलोक के बारहवें प्रतर में सौधर्म देवलोक के.समान पूर्व आदि चार दिशाओं में अशोका वतंसक आदि विमान होता है । (७८)
मध्ये सनत्कु मारावतंसकः पूर्ववद्भवेत्। . तत्रोपपातशय्यायामुपपातसभास्पृशि ॥६॥ उत्पद्यते खलु सनत्कु मारे न्द्रतया कृती । कृतपुण्यः करोत्युक्तरीत्याहदर्चनादिकम् ॥५०॥
मध्य में सौधर्मावतंसक विमान के समान सनत्कुमारवतंसक विभान होता है । इस उपपात सभा में रही उपपात शय्या में पुण्यशाली विशिष्ट जीव सनत्कुमार इन्द्र रूप में उत्पन्न होता है और प्रथम कहा है उस के अनुसार श्री अरिहंत भगवन्त की पूजा आदि करता है । (७६-८०) . .
ततः सिंहासनासीनश्चारु श्रृंङ्गारभासुरः । सामानिकै ढेिसप्तत्या, सहसैः परितो वृतः ॥८१॥ पन्च पल्योपमाढयाद्रपञ्चमा भेधिजीविभिः । अन्तः पर्ष द्तैर्देवसहस्त्रैरष्टभिर्वृतः ॥२॥ चतुः पल्योधिक सार्द्ध चतु:सागरजीविभिः । मध्यपर्षद्गतैर्देवसहस्रर्दशभिर्वृतः ॥८३॥ . त्रिपल्याभ्याधिकाध्यर्द्धचतुरर्णवजीविभिः । सहस्त्रैश्च द्वादशभिर्जुष्टो बाह्यसभासदाम् ॥८४॥