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________________ (४६२) पहले सागरोपम से कम ज्यादा आयुष्य वाले देवों के आहार श्वासो श्वास और .. देह प्रमाण कम ज्यादा होता है । (६४) कामभोगाभिलाषे तु, सौधर्म स्वर्गवासिनीः । पल्योपमाधिक दशपल्योपमान्त जीवनीः ॥६५॥ प्राच्यपुण्यानुसारेण, लब्धाधिकाधिक स्थितीः । स्मरन्ति चेतसा देवी: स्वार्हाः कामानलैधसा ॥६६॥ काम भोग के अभिलाषा समय में वह देव काम रूपी अग्नि के लिए ईंधन समान चित्त से सौधर्म स्वर्ग में रहने वाली एक पल्योपम से अधिक और दस पल्योपम की अन्दर की स्थिति धारण करने वाली पूर्व के पुण्यानुसार अधिक आयुष्य वाली अपने योग ऐसी देवियों को याद करता है । (६५-६६) ... ततस्ता अपि जानन्ति सद्योऽङ्गस्फूरणादिभिः । स्वकामुक रिरसां द्रागत्यन्तचतुराशयाः ॥६७॥ उसके बाद चतुर आशय वाली वह देवी भी तुरन्त ही अपने अंग के स्फुरणादि द्वारा अपने प्रिय की स्वेच्छा को समझ जाती है । (६७) ततश्चाद्भुतं शृङ्गारनेपथ्य सुषमाश्चिन्ताः । , उपायान्ति तदभ्यर्ण, भर्तुगृहमिवाङ्गनाः ॥६८॥ फिर अद्भुत शृंगार और वस्त्रादि की सजावट आदि शोभाओं से अलंकृत वह देवी, जैसे गृहणी-स्त्री अपने पति के गृह जाती है उस तरह से वह देव के पास में जाती है । (६८) ततस्ता विनिवेश्यैते, क्रोड सिंहासनादिषु । भुजोपपीडमालिङ्गय, पीडयन्तः स्तनौ मुहुः ॥६६॥ . चुम्बन्तोऽधरविम्बादौ, स्पृशन्तो जघनादिषु । - एवं संस्पर्शमात्रेण तुप्यन्ति सुरतैरिव ॥७०॥ उसके बाद वह देव भी उस देवांगना-अप्सरा को अपने गोद रूपी सिंहासन ऊपर बैठाकर भुजाओं द्वारा गाढ़ आलिंगन करके बारम्बार उसके स्तनो को दबाता
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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