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(४६१)
त्रिपाथोधि जीविनां तु क्रराः षट् तनुतुङ्गता ।। . एकादशविभक्तस्य, चत्वारोऽशाः करस्य च ॥५६॥
यहाँ देवताओं की ऊँचाई आयुष्य के अनुसार होती है दो सागरोपम के आयुष्य वाले देवताओं की ऊँचाई सात हाथ की होती है। तीन सागरोपम के आयुष्य वाले देवताओं की ऊँचाई छः हाथ , अंश होती है। (५८-५६)
त्रयो भागाः कराः षट् च चतुर्जलधिजीवि नाम। द्वौ भागो षट् करा स्तुङ्गो देहः पंचार्णवायुषाम् ॥६०॥
और चार सागरोपम के आयुष्य वाले देवों की ऊँचाई ६३ हाथ की होती है और पांच सागरोपम के आयुष्य वाले देवों की ऊँचाई ६२ होती है । (६०)
एको भागाः षट् कराश्च षट्सागरोपमायुषाम् । सप्ताब्धिस्थितयः पूर्णषट् करोत्तुङ्गविग्रहाः ॥६१॥
छ: सागरोपप के आयुष्य वाले देवों की ऊँचाई ६ हाथ की होती है और सात सागरोपम के आयुष्य वाले देवों की ऊँचाई छ: हाथ की होती है । (६१) .. ते चोच्छ्वसन्ति मासेनार्णवद्धयायुषस्ततः ।
- स्यात्पक्षा वृद्धिरूच्छ्वासान्तरे सप्तार्णवावधि ॥६२॥ _दो सागरोपम के आयुष्य वाले देव महीने में एक बार श्वास लेते हैं, एक सागरोपम वाले पंद्रह दिन की वृद्धि करते हैं अर्थात तीन सागरोपम वाले डेढ़ महीने में; चार सागरोपम वाले दो महीने में, ५ सागरोपम वाले अढाई महीने में, छ: सागरोपम वाले तीन महीने में और सात सागरोपम आयुष्य वाले देव तीन महीने में
और पंद्रह दिन में श्वास लेते हैं । (६२). . द्वाभ्यां त्रिभिश्चतुः पञ्च षट् सप्तभिः सहस्रकैः ।
स्थितेरपेक्ष्याऽब्दानामाहारयन्ति पूर्ववत् ॥६३॥
आयुष्य की स्थिति के अनुसार क्रमशः दो, तीन, चार, पाँच, छ:, सात हजार वर्ष के अन्तर में आहार लेते हैं । (६३) - यथोक्तसागरेभ्यश्च, हीनाधिकायुषां पुनः ।
आहारोच्छ्वास देहादिमानं हीनाधिकं भवेत् ॥६४॥