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छठे प्रतर के देवों का आयुष्य चार सागरोपम और २ अंश होता है सातवें प्रतर के देवों का आयुष्य ४ सागरोपम व अंश होता है । (५२)
एतदेव चतुर्भागास्यधिकं पतरे ऽष्टमे । नवमे नव भागाढयमेतत्पयोधिपञ्चकम् ॥५३॥
आठवें प्रतर के देवों का आयुष्य पाँच सागरोपम और , अंश होता है नौवें प्रतर के देवों का आयुष्य पांच सागरोपम व अंश होता है । (५३) ...
साधिका दशमे द्वाभ्यां भागााभ्यां षट् पयोधयः। . . एकादशेऽप्येत एव, साधिकाः सपृभिर्लवैः ॥५४॥
दसवें प्रतर के देवों का आयुष्य छः सागरोपम और कई अंश होता है ग्यारहवें प्रतर के देवों का आयुष्य छः सागरोपम व अंश होता है । (५४) :
प्रतर द्वादशे चात्र, देवानां परमा स्थितिः ।
अर्णवाः सप्त सर्वत्र, जघ्या त्वम्बुधिद्वयम् ॥५५॥ .
बारहवें प्रतर के देवों का उत्कृट आयुष्य सात सागरोपम होता है और जघन्य तो सर्व प्रतरों में दो सागरोपम समझना । (५५)
सनत्कुमारे निर्दिष्टा, येयं ज्येष्टेतरा स्थितिः । माहेन्द्रेऽपि सैव किंतु, ज्ञेया सर्वत्र साधिका ॥५६॥
सनत्कुमार देवलोक के बारह प्रतर के देवों की जो जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति कही है इससे कुछ अधिक माहेन्द्र देवलोक के प्रत्येक प्रतर के देवों की जघन्य- उत्कृष्ट स्थिति समझना चाहिये । (५६)
अत्रापि सातिरेकत्वं, सामान्योक्तमपि श्रुते । । पल्योपमस्यासंख्येयभागेनेति विभाव्यताम् ॥७॥
यहाँ कुछ अधिक इस तरह सामान्य रूप में आगम में कहा है वह पल्योपम के असंख्यातका भाग समझना । (५७)
देहोच्चत्वं सुराणां स्यादिह स्थित्यनुसारतः । द्वि सागरायुषस्तत्र, सप्तहस्तोच्चभूधनाः ॥५८॥