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________________ (४५७) सनत्कुमार देवलोक के पंक्तिगत कुल विमानों की संख्या बारह सौ छब्बीस (६२२६) होती है और पुष्पावकीर्णक विमान की संख्या ग्यारह लाख अठ्ठानवें हजार सात सौ चौहत्तर (११६८७७४) और सब विमानों की कुल संख्या बारह लाख की होती है । (३२-३३) तर्येवतविमानानां, सप्तत्याऽभ्यधिकं शतम् । षट्पञ्चाशत्समधिकं, त्रिकोणानां शतत्रयम् ॥३४॥ चतुष्कोणानां तथाष्ट चत्वारिशं शतत्रयम् । शतान्यष्ट चतुः सप्तत्याढयानि सर्वसंख्यया ॥३५॥ सप्त लक्षाण्यथ नवनवतिश्च. सहस्त्रकाः । षड्विशं च शतं पुष्पावकीर्णा इह निश्चिताः ॥३६॥ एषां योगेऽष्टलक्षाणि माहेन्द्रस्य सुरेशितुः। विमानानीशितव्यानि, भाव्यानि भव्यधीधनैः ॥३७॥ - माहेन्द्र देवलोक के पंक्तिगत विमानों में से गोल विमान एक सौ सत्तर (१७०) है । त्रिकोनाकार विमान तीन सौ छप्पन (३५६) है और चतुष्कोण विमान तीन सौ अड़तालीस (३४८) है । पंक्तिगत कुलं विमान आठ सौ चौहतर (८७४) होते हैं। इसमें पुष्पा वकीणंक विमान सात लाख निन्नानवें हजार एक सौ छब्बीस (७६६.१२६) है । इस तरह से माहेन्द्र देवलोक के राज्य भोगने के कुल मिलाकर विमान आठ लाख भव्य बुद्धिमान जीव को समझना । (३४-३७) ___ अमी विमानाः सर्वेऽपि धनवातप्रतिष्ठिताः । श्यामं बिना चतुवर्णा, मणिरत्त विनिर्मिताः ॥३८॥ ये सभी विमान धनवात ऊपर रहते हैं, मणिरत्न से निर्मित रहते हैं और श्याम वर्ण के बिना अन्य चार वर्ण वाले होते हैं । (३८) धनवातोऽतिनिचितो, निश्चलो वातसंचय । जगत्स्वाभाव्यतस्तत्र, विमानाः शश्वदास्थिताः ॥३६॥ यह धनवात अतिदृढ़ और निश्चल वायु का समूह है जगत के स्वभाव से ही ये विमान वहां हमेशा के लिए रहते हैं । (३६)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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