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________________ (४५६) पांक्तेयानि विमानानि, स्युः शतान्येकविशतिः । भवन्त्यन्यानि पुष्पावकीर्णानि तानि संख्यया ॥२६॥ सहस्राः सप्तनवतिर्लक्षाण्येकोन विंशतिः। शतानि नव सर्वाग्राद्विमान लक्षविंशतिः ॥२७॥ इसके बिना अन्य विमान पुष्पावकीर्ण होते हैं उसकी संख्या उन्नीस लाख सत्तानवे हजार नव सौ (१६६७६००) होती है और उसमें २१०० श्रेणिक विमान की संख्या मिलाने से बीस लाख विमान की संख्या होती है । (२६-२७) तत्र द्वादश लक्षाणि, सनत्कुमार चक्रिणः । . लक्षाण्यष्ट विमानानां, माहेन्द्राधीश्वरस्य च ॥२८॥ इसमें बारह लाख विमान सनत्कुमार इन्द्र के हैं और आठ लाख विमान माहेन्द्राधिपति के होते हैं । (२८) . सनत्कुमार माहेन्द्र सुरेन्द्रयोः पृथक् पृथक । सौधर्मेशानवद्वत्तादिषु स्वामित्वमुह्यताम् ॥२६॥ सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक में इन्द्र का सौधर्म और ईशान के समान गोल, चोरस और त्रिकोन विमानों में स्वामित्व अलग-अलग समझना चाहिये । (२६) संख्या सनत्कुमारेऽथ, वृत्तानां पंक्तिवर्तिनाम् । द्वाविंशत्यधिका पञ्चशती प्राच्यैर्निरूपिता ॥३०॥ त्रिकोणानां सर्वसंख्या, षट्पञ्चांश शतत्रयम् । . .. चतुष्कोणानां तथाष्टचत्वारिशं शतत्रयम् ॥३१॥ उसमें सनत्कुमार देवलोक के पंक्तिगत गोल विमान की संख्या पूर्व पुरुषों ने पाँच सौ बाईस (५२२) की कही है, त्रिकोन की संख्या तीन सौ छप्पन (३५६) और चतुष्कोण को संख्या तीन सौ अड़तालीस (३४८) की कही है । (३०-३१) षड्विंशा द्वादश शती, पांक्तेयानां भवेदिह । लक्षाण्ये कादशैवाष्टनवतिश्च सहस्रकाः ॥३२॥ सचतुः सप्ततिः सप्तशती पुष्पावकीर्णकाः । एवं द्वादश लक्षाणि, तृतीयस्य सुरेशितः ॥३३॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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