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________________ (४५५) नवमे त्रिचतुष्कोणाश्चतुर्दश चतुर्दश ।। वृत्तास्त्रयोदशैवं च, चतुःषष्टियुतं शतम् ॥२०॥ नौंवे प्रत्तर में त्रिकोन और चोरस विमान १४-१४ हैं और गोलाकार विमान तेरह हैं एवं चारों श्रेणि के कुल मिलाकर एक सौ चौसठ (१६४) विमान होते हैं । (२०) त्र्यस्त्राश्चतुर्दशान्ये च द्वैधा अपि त्रयोदश ।। पष्टयाधिकं शतं सर्वे, दशमे प्रतरे पुनः ॥२१॥ दसवें प्रतर में त्रिकोन विमान १४ हैं और गोलाकार व चोरस विमान १३१३ है और चारों श्रेणि के कुल विमान एक सौ साठ (१६०) होते हैं । (२१) एकादशे त्रिधाप्येते, त्रयोदश त्रयोदश । सर्वे पुनः संकलिताः षट्पञ्चाशद्युतं शतम् ॥२२॥ . ग्यारहवें प्रतर में तीन प्रकार के विमान १३-१३ होते हैं । चार श्रेणि के एक सौ छप्पन (१५६) विमान होते हैं । (२२) . . द्वादशे त्रिचतुष्कोणास्त्रयोदश त्रयोदश ।। वृत्ताश्च द्वादशैवं च, द्विपश्चाशं शतं समे ॥२३॥ बारहवें प्रतर में त्रिकोन और चोरस विमान १३-१३ होते है गोल विमान १२ होते हैं और.चार श्रेणि के कुल मिलाकर एक सौ बावन (१५२) होते हैं । (२३) एवं च पंक्तिवृत्तानां साशीतिरिह षट्शती । _ पंक्तित्र्यस्त्राणां च सप्त शतानि द्वादशोपरि ॥२४॥ स्यात्पंक्तिचतुरस्राणां, सषण्णवति षट्शति । द्वादशानामिन्द्रकाणां, क्षेपेऽत्र सर्व संख्यया ॥२५॥ इस तरह से बारह प्रतर के मिलाकर पंक्ति में रहे गोलकार विमान छ: सौ अस्सी (६८०) होते हैं त्रिकोन विमान की संख्या सात सौ बाइस (७२२) होती है तथा चोरस विमान की संख्या छ: सौ छियानवे (६६६) है, इन संख्या में इन्द्र विमान बारह मिलाने से कुल विमान की संख्या इक्कीस सौ होते हैं । (२४-२५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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