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________________ (१५४) षोडश त्रिचतुष्कोणा: सर्वेष्टाशीतियुक् शतम् । तुर्ये त्र्यस्त्रा षोडशान्ये, द्वैधाः पञ्च दशाखिला: In५॥ प्रथम प्रतर में प्रत्येक पंक्तिके अन्दर त्रिकोनाकार के सत्तरह विमान होते हैं और गोलाकार तथा चोरस सोलह-सोलह विमान होते हैं, चार पंक्ति में कुल मिलाकर एक सौ छियानवे (१६६) है, दूसरे प्रतर में प्रत्येक आकार के विमानों की संख्या १६-१६ की है और चारों पंक्ति के कुल मिलाकर एक सौ ब्यानवे होते हैं तीसरे प्रतर के प्रत्येक पंक्ति में गोलाकार विमान पंद्रह है और त्रिकोन व चोरस १६-१६ होते हैं इन कुल चार पंक्ति के एक सौ अट्ठासी (१८८) विमान होते हैं और चौथे प्रतर में त्रिकोण विमान १६ हैं और दूसरे १५-१५ हैं अत: कुल मिलाकर एक सौ चौरासी (१८४) विमान होते हैं । (१२-१५) . शतं चतुशीत्याढयं पञ्चमें प्रतरे पुनः। वैधा अपि पञ्चदस, सर्वेऽशीत्यधिकं शतम् Im६॥ . पाँचवें प्रतर में त्रिकोण और चोरस विमान १५-१५ है और चारों श्रेणि मिलाकर कुल एक सौ अस्सी (१८०) विमान होते हैं । पञ्चदश पञ्चदश, पष्ठे त्रिचतुरस्त्रकाः । वृत्ताश्चतुर्दशैवं च षट् सप्ततियुतं शतम् ॥१७॥ छठे प्रतर में त्रिकोण और चोरस विमान १५-१५ हैं और गोलाकार विमान १४ होते हैं । कुल चार श्रेणी के एक सौ छहत्तर (१७६) विमान होते हैं । (१७) सप्तमे प्रतरे त्रयस्वाः, प्रोक्ताः पञ्चदशोत्तमैः ।। वृत्ताच चतुरस्राश्च, चर्तुदश चतुर्दश ॥१८॥ द्विसप्तत्या समधिकं शतं सर्वेऽष्टमे पुनः । चतुर्दशैव त्रेधापि, सर्वेऽष्टषष्ठियुक्त् शतम् ॥६॥ सांतवें प्रतर में त्रिकोण विमान पंद्रह है, गोलाकार और चोरस विमान १४१४ हैं और चार श्रेणी के कुल विमान एक सौ बहत्तर (१७२) होते हैं आठवें प्रत्तर में तीनों प्रकार के विमान १४-१४ होते हैं और चारों श्रेणी के कुलं विमान एक सौ अडसठ होते हैं । (१८-६)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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