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________________ (४५३) वैडूर्म १ रूचकं २ चैव रूचिकं ३ च ततःपरम् । अङ्क ४ च स्फटिकं ५ चैव तपनीयाख्य ६ मेव च ॥७॥ मेघ ७ भयं च ८ हारिद्रं नलिनं १० लोहिताक्षकम् ११। वजं १२ चेति प्रतरेषु द्वादशस्विन्द्रकाः क्रमात् ॥८॥.. दोनों देवलोक के बारह प्रतर होते हैं, प्रत्येक प्रतर में इन्द्रक विमान होता है । १-वैडुर्य, २--रूचक, ३-रूचिक, ४-अंक, ५-स्फटिक, 6-तपनीय, ७-मेघ, ८-अर्ध्य,६-हारिद्र, १०-नलिन, ११-लोहिताक्ष, १२-वज्र, इन नाम के प्रत्येक प्रतर में क्रमशः बारह इन्द्रक विमान होते हैं । (६-८) चतस्रः पंक्तयो दिक्षु, प्रतिप्रतरमिन्द्रकात् । अन्तरेषु बिना प्राची, प्राग्वत्पुष्पावकीर्णकाः ॥६॥ प्रत्येक इन्द्रक विमान से चारों दिशा में विमान की एक-एक श्रेणी है और उसके आंतर-बीच में पूर्व दिशा बिना की दिशा में पुष्पावकीर्णक विमान है । (६) . .. . . प्रकोनपञ्चाशदष्टसप्तषट् पञ्चकाधिका । चतुस्त्रिदृयेकाधिका च, चत्वारिशत्ततः परं ॥१०॥ चत्वारिशद थैकोनचत्वारिंशद्विमानकाः। अष्टात्रिशत्प्रतिपति, प्रतरेषु क्रमादिह ॥११॥ प्रत्येक प्रतर में क्रमश: पहले में ४६, दूसरे में ४८, तीसरे में ४७, चौथे में ४६, पांचवे में ४५, छठे में ४४, सातवें में ४३, आठवें में ४२, नौवे में ४१, दसवें में ४०, ग्यारहवें में ३६, बारहवें में ३८ विमान होते हैं । (१०-११) प्रथम प्रतरे सप्तदश व्यस्त्रा विमानकाः । प्रतिपति चतुष्कोणा, वृत्ताः षोडश षोडश ॥१२॥ सर्वे पंक्ति विमानाश्च षण्णवत्यधिकं शतम् । द्वितीय प्रतरे, त्रैधा अपि षोडश षोडश ॥१३॥ सव्वे चाते संकलिता, द्विनवत्यधिकं शतम् । तात्तीयीके प्रति पंक्ति वृत्तापञ्चदशोदिताः ॥१४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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