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श्री भगवती सूत्र के तीसरे शतक पहले उद्देश में कहा है कि हेमदंत देवों के इन्द्र, देवों के राजा, शक्र महाराजा ईशानेन्द्र के पास में क्या जा सकता है ? गौतम ! हाँ वह जा सकता है इत्यादि -
साधारण विमानादि हे तोर्जा त्वेनयोर्द्वयोः । उत्पद्यते विवादोऽपि, मिथो निर्जरराजयोः ।।६५०॥ .
साधारण विमानों के कारण ये दोनों इन्द्र के बीच में कुछ किसी समय विवाद भी उत्पन्न होता है । (६५० )
आध्मातताम्रवत्कोधात्ताम्राननविलोचनौ । कल्पान्त वह्नि तपनाविवाशक्यनिरीक्षणौ ।।६५१॥ चण्डरूपौ तदाचैतो कोऽन्यो वक्तुमपीश्वरः ! । । । योऽत्रयुक्तमयुक्तं वा, निर्णीय शमयेत्कलिम् ॥६५२।। . ततः क्षणान्तरादीषच्छान्तौ विचिन्त्य चेतसा ।
सनत्कु मारं देवेन्द्रं , स्मरतस्ताबु भावपि ॥५३॥
गर्म किए ताम्बा के समान क्रोध से लाल श्याम मुख और आँखों वाले कल्पांत काल की अग्नि के समान जिसके सामने देखकर भी प्रचंड रूप वाले इन दोनो देवेन्द्रों को कहने का कोई नहीं समर्थ हो सकता है जो योग्य-अयोग्य का निर्णय करके झगडे को शान्त कर सके । उसके बाद क्षण में फिर कुछ शान्त हुए वे दोनों इन्द्र मन में विचार करके सनत्कुमार का स्मरण करते हैं । (६५१-६५३)
सोऽपि ताभ्यां स्मर्यमाणो विज्ञायावधिनाद्रुतम् ।। तत्रागत्य न्याप्यकार्यमाज्ञाप्य शमयेत्त्कलिम् ॥६५४॥
दोनों के द्वारा याद करने से वह सन्तकुमार इन्द्र भी अवधिज्ञान से जानकर वहां आकर योग्य कार्य की आड़ देकर झगड़े को शान्त करते हैं। ...
ततः सनत्कु मारेन्द्र बोधितौ त्यक्तविग्रहो ।
तदाज्ञां विभ्रतो मौलौ, तौमिथः प्रीतमानसौ ॥६५४॥ .
तथाहुः - ‘अस्थि णं भंते ! सक्की साणाणं देविदाणं देवराईणं विवादा समुप्पजंति ? हंता अत्थीत्यादि' भगवती सूत्रे ३,१ ।। .