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(४४६) - तथाहुः - सोहम्मीसाणे सुण भंते ! कप्पेसु कह देवा आहेवच्चं जाव विहरंति ! गो० दसा देवा विहरंति । इत्यादि भगवती सूत्रे ।
___ श्री भगवती सूत्र में कहा है कि - हे भदंत ! सौधर्म और ईशान् देवलोक में कितने देवता अधिपति रूप में फिरते विचरते हैं ? हे गौतम ! दस देवता अधिपतिरूप भोगते हैं तब तक विचरते हैं।
एवमीशानदेवेन्द्र, सामानिकादिभिर्वृतः । .. विमानावासलक्षणामिहाष्टाविंशतेः प्रभुः ।।६४०॥ उत्तगर्द्धलोकनेता, कान्त्या विद्योतयन् दिशः । असंख्य देवी देवानामीशान स्यर्गवासिनाम् ॥६४१॥ आधिपत्यमनुभवत्युदात्त पुण्यवैभवः ।। प्रतापनिस्तुलः शूलपाणिवृषभवाहनः ॥६४२॥ त्रिभिविशेषकं ।।
इस तरह से सामानिक देवता से घिरे हुए अट्ठाईस लाख विमान के अधिपति उत्तरार्धलोक के स्वामी, अपनी कान्ति से दिशाओ को प्रकाशित करने वाले विशिष्ट पुण्यशाली उनके प्रताप से जिसकी तुलना नहीं हो सके, शूल नामक शस्त्र को हाथ में धारण करने वाला वृषभ वाहन वाले ईशानेन्द्र ईशान स्वर्ग में रहने वाले असंख्य देव देवीयों के स्वामीरूप को अनुभव करने वाला होता है। (६४०-६४२)
अहो माहात्म्यमस्योच्चैयत्सौधर्मेश्चरोऽपिहि । . आदृतः पार्श्वमभ्येतुं, क्षमते न त्वनादृतः ॥६४३॥ एवमालापसंलापौ, कर्तृ संमुखमीक्षितुम । अनेन सह सौधर्माधीशोऽनीशो हनादृतः ॥४४॥
अहो ! ईशानेन्द्र का महात्म्य इतना विशेष है कि स्वयं सौधर्मेन्द्र भी ईशानेन्द्र की इच्छा से ही उनकी अनुज्ञा होती है । तभी ही उनके नजदीक जा सकता है अन्यथा नहीं जा सकता । इसी तरह उनके साथ में बातचीत करना, सामने जाना इत्यादि सारी प्रवृत्तियाँ भी ईशानेन्द्र की इच्छा बिना सौधर्मेन्द्र नहीं कर सकता है । (६४३-६४४)