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(४४४) अग्रेतनानामप्योजयुजामेवं विडोजसाम् । तृतीय तुर्ययोर्वाच्यो, व्यत्ययो लोकपालयोः ॥२८॥ यथा तृतीयेन्द्रस्यैते, कमात्त्सौधर्मराजवत् । चतुर्थेन्द्रस्य चेशान सुरेन्द्रस्येव ते क्रमात् ॥६२६॥ विमानानां चतुर्णामप्येषामधो विवर्तिनि । .. तिर्यगलोके राजधान्यश्चत्तस्रः प्राग्वदाहिताः ॥६३०॥ ..
आगे के शक्तिशाली, इन्द्र महाराज के तीसरे और चौथे लोकपाल में विपर्यय है जैसे कि तीसरे इन्द्र के लोकपाल सौधर्म इन्द्र के समान समझना एवं चौथे इन्द्र के लोकपालं ईशानेन्द्र के समान समझना । लोकपाल के चार विमानों के नीचे तिर्यंच लोक में रही लोकपाल की पूर्व के समान चार राजधानियाँ समझनी चाहिये । (६२८-६३०)
सौधर्मेशानेन्द्र लोकपालानां यास्तु वर्णिताः । नगर्यः कुण्डलद्वीपे, द्वात्रिशत्तास्त्वितः पराः ॥६३१ ।।
सौधर्म और ईशानेन्द्र के लोकपाल की कुंडल द्वीप में जो बत्तीस नगरिया कही है वे इन राजधानियों से अलग समझना चाहिये । (६३१)
स्थितिश्च सोमयमयोः, पल्योपमद्वयं भवेत् । पल्योपमस्य चैकेन, तृतीयांशेन वर्जितम् ॥६३२ ।। पूर्ण वैश्रमणस्याथ, स्थिति पल्योपमद्वयम् । ... तृतीयांशाधिकं पल्यद्वयं च वरुणस्य सा ॥६३३॥
सोम और यम लोकपाल का आयुष्य १/३ कम दो पल्योपम का होता है वैश्रमण का आयुष्य पूर्ण दो पल्योपस का होता है और वरुण का आयुष्य १/२ पल्योपम अधिकं दो पल्योपम का होता है । (६३२-६३३)
पृथ्वीराजी च रयणी, विद्युश्चैत्यभिधानतः । चतुर्णाप्यमीसा स्युश्चतस्रः प्राणवल्लभाः ।।६३४॥ .
चारों लोक पाल को, पृथ्वी, राजी, रयणी और विद्युत नाम की चार पट्टरानियाँ होती हैं । (६३४)