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४-गोपनीय वस्तुओं को छुपाने के लिये, इत्यादि के कारण से अंधकार की रचना करते हैं । (६१८-६२१)
विकुर्वणा शक्तिरपि, स्यादस्य वज्रपाणिवत् ।
सर्वत्र सातिरेकत्वं, किन्तु भाव्यं विवेकिभिः ॥२२॥
ईशानेन्द्र की रचना शक्ति भी सौधर्मेन्द्र के समान होती है फिर भी प्रत्येक स्थान में विवेकी पुरुषों ने सौधर्मेन्द्र से यहां कुछ अधिकता समझ लेना । (६२२)
चत्वारोऽस्य लोकपालास्तत्रत्रेशानावंतसकात् । असंख्ये यसहस्राण्यं, योजनानामतिक मे ॥६२३॥ प्राच्या विमानं सुमनोऽभिधानं सोम दिक्पत्ते । विमान सर्वतोभद्रं, यास्यां यमहरित्पते ॥६२४॥ अपरस्या च वरुण विमानं वल्गुनामकम् । विमानं वैश्रश्रमणस्योत्तरस्यां स्यात्सुवल्गुकम् ॥६२५॥
इस ईशानेन्द्र के चार लोकपाल होते हैं, उसमें ईशानावंतसक विमान से असंख्याता हजार दूर पूर्व दिशा में सोम दिग्पाल का सुमन, दक्षिण दिशा में यम दिग्पाल सवतोभद्र, पश्चिम दिशा में वरुण दिगपाल का वल्गु और उत्तर दिशा में वैश्रमण दिग्पाल का सुवल्गु नामक विमान होता है । (६२३-६२५)
सौधर्मेशानवच्चैवं स्वर्गेषु निखिलेष्वपि । स्वैन्द्रावतंसकाल्लोकपालावासाश्चतुर्दिशम् ।।६२६॥
सौधर्म और ईशान् देवलोक के समान प्रत्येक स्वर्ग में अपने-अपने इन्द्र वतंसक विमान गो चार दिशा में लोकपाल के निवास होते हैं । (६२६) .. उक्तं चः-कप्पस्स अंतपयरे नियकप्पवडिसयाविमाणाओ।
इदं निवासा तेसिं चउद्दिसि लोग पालाणं ॥२७॥
कहा है कि - प्रत्येक देवलोक के अन्तिम प्रतर में अपने-अपने नाम के कल्प वतंसक विमान इन्द्र निवास होते हैं और उसके चारों दिशाओं में इन्द्र के लोकपाल के विमान होते हैं । (६२७)