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________________ (४४२) यह ईशानेन्द्र जाने के उतरने के दक्षिण मार्ग से नंदीश्वर के ईशान कोने में रहे रतिकर पर्वत पर उतरता है । (६१५) प्रागुक्त वज्राभ्यधिकशक्ति वैभवशाभनम् । शूलमस्य करे साक्षाच्छूलं प्रतीपचेतसाम् ॥६१६॥ पूर्व कहे अनुसार सौधर्मेन्द्र के आयुष्य वज्र से अधिक शक्ति वैभव और शोभा वाला शूल नामक शस्त्र को ईशानेन्द्र हाथ में धारण करते हैं जो शत्रुओं के मन में साक्षात् शूल के समान चुभता है । (६१६) ऐरावणाधिक स्फातिवृर्षोऽस्य वाहनं सुरः । स च प्रभौ जिगमिषौ वृषीभूयोपतिष्टते ॥ ६१७॥ , सौधर्मेन्द्र के ऐरावत हाथी से अधिक बलवान वृषभ का देवरुप वाहन इस ईशानेन्द्र को होता है जबकि स्वामी को बाहर जाने की इच्छा होती है उस समय वृषभ तैयार रहता है । (६१७) तमस्कायभिधा देवाः, सन्त्यंस्य वशवर्तिनः । द्विविधं हि तमः स्वाभाविकं दिव्यानुभावजम् ॥६१८ ॥ तत्रेशान स्वर्गपतिश्चिकीर्षुस्तमसां भरम् । पर्षदादिक्रमात्प्राग्वद् ज्ञापयस्याभियोगिकान् ॥ ६१६॥ तमस्कायिकदेवांस्तेऽप्यादि शन्त्याभियोगिकाः । तमस्कायं ततश्चाविष्कुर्वन्त्येते ऽधिपाज्ञया ॥ ६२० ॥ चतुर्विधाः परेऽप्येवं, विकुर्वन्ति सुरास्तमः 1 क्रीडारतिद्विषन्मोहगोप्यगुप्त्यादि हेतुभिः ॥ ६२१॥ तमस्काय के देवता इस ईशानेन्द्र के वश होते हैं उसमें दो प्रकार का है १ - स्वाभाविक और २. दिव्य प्रभाव से हुआ हो, उसमें ईशानेन्द्र अंधकार को करने की इच्छा करे उस समय पर्षदा के क्रम से अभियौगिक देवता को दिखाता है वे अभियौगिक देवता नमस्कार देवता को आदेश - आज्ञा देते हैं, इससे अपने स्वामी की आज्ञा से वे तमस्कायिक देव अंधकार की रचना करते हैं, दूसरे भी चारों प्रकार के देवता १- -क्रीड़ा, २- रति क्रिया, ३ - शत्रु को भ्रम में डालने वाला और -
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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