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तुर्यस्येन्द्रस्य पष्ठस्याष्टमस्य दशमस्य च । द्वादशस्यापि सेनान्यः, स्युरेतैरेव नामभिः ॥६११॥
चौथे, छठे, आठवें, दसवें और बारहवें इन्द्र के सेनाधिपतियों के नाम भी इस प्रकार से ही होते हैं । (६११)
पादात्याधिपतिर्योऽस्य, नाम्ना लघु पराक्रमः । स पूर्वोक्त हरिनैगमेषिजैत्रपराक्रमः ।।६१२॥
पैदल सेना का अधिपति जो लघु पराक्रम नाम का है वह पहले के हरि नैगमपि के पराक्रम को जीत लेने वाला है । (६१२)
अनेन नन्दिघोषाया, घण्टायास्ताडने कृते ।। युगपन्मुखरायन्ते, घण्टाः सर्व विमानगाः ।।६१३॥
यह लघु पराक्रम सेना के जब नन्दि घोष नाम के घंटे को बजाते हैं तब एक साथ में सब विमानों में रहे घंटे बजते हैं और वह नाद गूंज उठता है । (६१३)
अस्य यानविमानं च, प्रज्ञप्तं पुष्पकाभिधम् । पुष्पकाख्यः सुरश्चास्य, नियुक्तस्तद्विकुर्वणे ॥६१४॥ 'ईशानेन्द्र का गमनागमन का पुष्पकं नाम का विमान है और उसकी रचना करने के लिए पुष्पक देव को नियुक्त किया होता है । (६१४)
तथोक्तं स्थानांगेऽष्टमें स्थानके - एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा प० तं० सक्केजाव सहस्सारे,एतेसिणं अट्ठण्हमिदांणं अट्ठ परियाणिया विमाणाप० त० पालए १, पुष्फए २; सोमणसे ३, सिरिवच्छे ४, णंदियावत्ते ५, कामकमे ६, पीतीमणे७ विमले ८ इति । .
. श्री ठाणांग सूत्र के आठवें स्थान में कहा है कि - इन आठ कल्प में आठ इन्द्र कहे हैं उन शक्र महाराज से लेकर सहस्रार तक के इन आठ इन्द्रों के बाहर जाने के विमान आठ कहे हैं वह इस तरह - १-- पालक, २-पुष्पक, ३-सौमनस, ४- श्री वत्स, ५-नंदावर्त, ६-कामक्रम, ७-प्रीतिमन, ८-विमल । इति
दक्षिणात्येन निर्याण मार्गेणावतरत्यधः । अयं नन्दीश्वरद्वीपैशान्यां रतिकराचले ॥६१५॥