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________________ (४४०) कुल छप्पन इन्द्रों की भवनपति-२०, व्यन्तर-३२, ज्योतिष्ट-२, वैमानिक-२, इन्द्राणियों की कुल मिलाकर (समाः शब्द का अर्थ समान नहीं परन्तु सभी) २७० होता है । (६०५) पुष्पचूलार्यिका शिष्या, श्री पार्पितसंयमाः । कृतार्द्धमासानशना, दिव्यां श्रियमशिश्रियन् ॥६०६॥ . वे सभी ही अर्थात् २७० देवियों ने पूर्व जन्म में श्री पार्श्वनाथ परमात्मा के पास में दीक्षा स्वीकार करके पुष्पचूला साध्वी की शिष्या बनकर पक्ष का अनशन करके दिव्य लक्ष्मी की प्राप्ति की । (६०६). इत्यर्थतो ज्ञात० द्वितीय श्रुत० - अष्टाप्यग्रमहिष्योऽस्य, सौधर्मेन्द्राङ्गना इव । ... वसुनेत्रसहस्त्राढयं, लक्षं स्युः संपरिच्छदाः ॥६०७॥ . यह बात अर्थ से ज्ञाता सूत्र के द्वितीय श्रुत स्कंध में कहा है - ईशानेन्द्र की ये आठो पट्टरानियाँ सौधर्म की. पट्टरानियों के समान एक लाख अट्ठाईस हजार के परिवार वाली होती है । (६०७) सौ धर्मेन्द्रवदेषोऽपि, स्थानं चक्राकृति स्फुरत् । विकुळ योगनेताभिः सह भुड्ते यथा सुखम् ॥६०८॥ सौधर्म के समान यह ईशानेन्द्र भी देदीप्यमान चक्राकार से स्थान बनाकर इन सब देवियों के साथ में इच्छानुसार भोग भोगता है । (६०८) सैन्यानि पूर्ववत्सप्त, सप्तास्य सैन्यनायकाः । महावायुः १ पुष्पदन्तो २ महामाठर ३ एव च ॥६०६॥ महादामर्द्धि नामा ४ च तथा लघुपराक्रमः ५ । महाश्वेतो ६ नारदश्च ७ नामतस्ते यथाक्रमम् ॥६१०॥ पूर्व में सौधर्म का कहा था उस समान ईशानेन्द्र को भी सात सेना होती है, उनके सेनापति भी सात होते हैं उनके नाम अनुक्रम से - १- महावायु, २ - पुष्पदन्त, ३-महामाठर, ४-महादामर्घि, ५-लघु पराक्रम ६- महाश्वेत और ७-नारद है । (६०६-६१०)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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