________________
(४३६)
अभ्यन्तर पर्षदा के देवों का पल्योपम और देवियों का पाँच पल्योपम का आयुष्य कहा है । (८६६)
माया देवदेवीनां, षट् चत्वारी कमात् स्थितिः । पंचत्रीणि च बाह्यायां, पल्योपमान्यनुक्रमात् ॥६००॥
मध्यम पर्षदा के देव देवियों का आयुष्य अनुक्रम से छः और चार पल्योपम का कहा है और बाह्य पर्षदा के देव देवियों का आयुष्य क्रमशः पाँच और तीन पल्योपम का होता है । (६००)
कृष्ण च कृष्णराजी च, रामा च रामरक्षिता । वसुंश्च वसुगुप्ता च, वसुमित्रा वसुन्धरा ।।६०१॥
कृष्ण, कृष्णराजी रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्त वसुमित्रा और वसुंधरा वर्तमान कालीन इन चार अप्सराओं का पूर्वजन्म इस तरह से है । (६०१)
साप्रतीनानामासां प्राग्भवस्त्वेवं: - पूर्वकासीनिवासिन्यौ द्वे द्वे राजगृहालये ।। द्वै श्रावस्ति निवासिन्यौ, द्वै कौशाम्ब्यां कृतस्थिती ॥६०२॥ रामारव्यपितृका वृद्धकन्या धर्माख्यमातृकाः । श्री पार्श्वपुष्पचूलान्ते वासिन्योऽष्टापि सुसुव्रता ।।६०३॥ अन्ते च पक्षं संलिख्य, कृष्णावतंसाकादिषु ।
समुत्पन्न विमो नेषु, नवपल्योपमायुषः ।।६०४॥ - दो काशी निवासी, दो राजगृह निवासी, दो श्रावस्ती और दो कौशाम्बी निवासी थीं. इन सब बड़ी उम्र की कन्याओं के राम नाम के पिता थे और धर्मा नाम की माता थी और उन्होंने श्री पार्श्वनाथ भगवान् के अन्तेवासी पुष्पचूला साध्वी जी के पास में व्रत स्वीकार किया था और अंत में पंद्रह दिन का संलेखना करके कृष्णावर्त सभादि विमान में नौ पल्योपम के आयुष्यवाली देवी रूप में उत्पन्न हुई थी । (६०२ से ६०४)
पट् पञ्चाशत इत्येवमिन्द्राणां सर्वसंख्यया ।। इन्द्रांण्यो द्वे शते सप्तत्यधिके सन्ति ताः समाः ॥६०५॥