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________________ (४२६) . शास्त्र में कहा है कि - ‘सोम और यमदेव का १३ पल्योपम आयुष्य होता है, वरुण देव का कुछ कम दो पल्योपम का आयुष्य होता है और कुबेर देव का दो पल्योपम का आयुष्य कहा है इस तरह से लोकपाल का आयुष्य कहा है ।'(८१८) चतुर्णामप्पमीषां येऽपत्यप्रायाः सुधाभुजः । ते पल्य जीविनः सर्वे, बिना शशिदिवाकरौ ।८१६॥ ... ये चारों लोकपाल के पुत्र समान जो देवता होते हैं. उसमें से सूर्य और चन्द्र बिना सर्व देव एक पल्योपम के आयुष्य वाले होते हैं । (८१६) . . . . एवं सामानिकै स्त्रायस्त्रिशपार्षदमन्त्रिभिः । .. .. पत्नीभिलोर्कपालैश्च सैन्यैः सेनाधिपैः सुरैः ।।८२०॥ . अन्येरपि धनैर्देवीदेवैः सौधर्मवासिभिः । सेवितो दक्षिणार्द्धस्य, लोकस्य परमेश्वरः ।।८२१॥ यथास्थानं परिहित मौलिमालाद्यङ्कृतिः । शरत्काल इव स्वच्छाम्बरोऽर्केन्द्रच्छकुण्डलः ।।८२२॥ पूर्ण सागर युग्मायुरास्ते स्वैरं सुखाम्बुधौ । मग्नो मनश्रमः स्वः स्त्रीनाट्यनादप्रमोदितः ।।८२३॥ ... इस तरह से सामनिक देवता त्राय स्त्रिंश देवता, पर्षदा के देवता, मन्त्री देवता, अप्सराएं, लोक पाल सैन्य सेनापति देवता और अन्य भी बहुत सारे सौधर्मवासी देव देवियों से सेवा होती और दक्षिणार्थ लोक के ईश्वर, योग्य स्थान में मुकुट और मालादि अलंकारों को धारण करने वाले शरद काल के स्वच्छ बादल समान स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाले सूर्य और चन्द्र समान स्वच्छ व तेजस्वी दो कुंडल धारण करने वाले पूर्ण दो सागरोपम के आयुष्य वाले श्रमरहित सुखरूपी समुद्र में मग्न स्वर्ग की स्त्रियाँ और नाटक के नगद से आनन्दित हुए सौधमेन्द्र में इच्छा पूर्वक रहते हैं । (८२०-८२३) आश्चर्यमीद्दगैश्चर्य व्यासक्तोऽप्यन्तरान्तरा । जम्बूद्वीपमवधिना, निरीक्षते महामनाः ।।८२४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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