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वैश्रमण देव के सामानिक देव तथा उनके नौकर देवता तथा सुपर्ण कुमार द्वीप कुमार, दिक् कुमार नामक तथा व्यन्तर अपनी-अपनी देवियों सहित तथा अन्य भी उस प्रकार के देव होते हैं वे सभी वैश्रमण देव के आज्ञावर्ती होते हैं । (८०५-८०६)
सीसकायस्त्रपुताम्ररै रत्नरजतकराः ।.. वज्राकरा वसुधाराः, स्वर्णरत्नादिवृष्टयः ।।८०७॥ ..... पत्र पुष्प बीज फलमाल्य चूर्णादिवृष्टयः । वस्त्राभरणसद्गन्धभाजनक्षीरवृष्टयः ॥८०८॥ तथा सुकाल दुष्कालौ, वस्त्वल्पार्धमहार्धताः । सुभिक्ष दुर्भिक्ष गुड घृत धान्यादिसंग्रहाः ।।८०६॥ : क याच विक्र याश्चैव, चिरत्नरत्नसंचयाः । । प्रहीण स्वामिकादीनि, निधानानि च भूतले ॥८१०॥ .. नेत्याद्याविदितं जम्बूद्वीपयाम्यार्द्ध गोचरम् । धनदस्य विभोर्यद्वा, नाकिनां तन्निषेविणाम् ।।८११॥..
जम्बू द्वीप के दक्षिणार्ध विभाग में सीसा, लोहा, कलई, तांबा, रजत, रत्न, चाँदी की खान, वज्र की खान, धन वृष्टि, स्वर्ण रन की वृष्टि, पत्र, पुष्प, बीज, फल, माला, चूर्णादि की वृष्टि वस्त्र, आभरण, सुगन्धी द्रव्य, भाजन, क्षीर की वृष्टि, तथा सुकाल और दुष्काल वस्तु की सस्तापन-महंगाई, भिक्षा की सुलभता-दुर्लभता, गुड़, घी, अनाजादि के संग्रह, उसका लेना देना, पुराने रत्नों का संग्रह, भूतल में रहना, स्वामी आदि के निधान आदि वस्तुएं वैश्रमण और उनके सेवक देवताओं के ख्याल में रहता है, उनसे बाहर नहीं है । (८०७-८११) ।
पूर्णमाणि शालिभद्राः, सुमनोभद्र इत्यपि । .. चक्ररक्षः पुण्यरक्षः, शर्वाणश्च ततःपरम् ।।८१२॥ सर्वयशाः सर्वकामः, समृद्धोऽमोघ इत्यपि ।
असङ्ग थापत्यसमा, एते वै श्रमणेशितुः ।।८१३॥ पूर्णभद्र, मणिभद्र, शालिभद्र, सुमन भद्र, चक्र रक्ष, पुण्य रक्ष शर्वाण सर्वयशा,