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लवण समुद्र में ईशान् कोने के अन्दर वेलंधर पर्वत के पीछे नागदेव के आवास रूप, कर्कोटक पर्वत है और उसका स्वामी कर्कोटक देव होता है । (७६६)
विद्युत्प्रभाद्रिराग्नेय्यां, तस्य कर्दमकः पतिः । अञ्जनस्तु लोकपालो, वेलंबस्य सुरेशितुः ।।८००॥ धरणेन्द्र लोकपालस्तुर्योऽत्र शंखपालकः । पुंड्राद्यास्तु सुराः शेषा न प्रतीताविशेषतः ।।८०१ ।।
अग्नि कोने में विद्युतप्रभ नामका पर्वत है, उसका स्वामीर्कदमक देव है वे लंग नामक इन्द्र का लोकपाल अंजन नामका है चौथा शंखपाल धरणेन्द्र का लोकपाल है । यहां पुंड्र आदि देवता विशेष रूप में प्रसिद्ध नहीं है । (८००-८०१)
देशोनपल्यद्वितयस्थितिरेष मनोरमान् । ... वरुणाख्यो महाराजो, भुङ्क्ते भोगाननेकध ।।८०२॥
दो पल्योपम से कुछ कम आयुष्य वाला वरुण नाम का लोकपाल अनेक प्रकार के मनोरम सुखों को भोगता है । (८०२) - उदीच्यामाथ सौधर्मावतंसकादतिक्रमे । - असंख्येययोजनानां, विमानं वल्गुनामकम् ।।८०३॥
सौधर्मावतंसकं विमान से उत्तर दिशा में असंख्य योजन जाने के बाद वल्गु नाम का विमान होता है । (८०३) ।
देवस्तत्र वैश्रमणो, विभाति सपरिच्छदः ।
यः सौधर्म सुरेन्द्रस्य, कोशाध्यक्ष इति श्रुतः ।।८०४॥
उस विमान के अन्दर परिवार सहित वैश्रमण नाम का देव शोभायमान होता है जो सौर्धेन्द्र के खजांची के रूप में प्रसिद्ध है । (८०४)
अस्य सामानिकाद्याः ये, तेषां भृत्याश्च ये सुराः । सुपर्णद्वीप दिग्नाग कु मारा व्यन्तरापि ।।८०५॥ सर्वेऽप्येते सदेवीका ये चान्येऽपि तथा विधाः । भवंति ते वै श्रमणानुशासनवशीकृताः ।।८०६॥