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ष्टयः ।
तेजस्वी, प्रतापी सूर्य समान, वरुण देवता वहां विराजमान होता है. इसके सामनिक आदि देवता, असुर देवता तथा पनि सहित स्तमित कुमार, उदधि कुमार, नाग कुमार देवता, अन्य भी ऐसे प्रकार के देव वरुण की आशा का अनुकरण करते हैं । (७६२-७६३)
जम्बूद्वीपदक्षिणाद्धे, सन्मंदाल्पातिवृष्टयः । तटाकादिजलभरा, जलोद्भेदा जलोद्वहाः ॥७६४॥ .. देश ग्रामादिवाहाश्च, जलोद् भृता जनक्षयाः । नाज्ञाता वरुणस्यैते, सर्वे तत्सेविनामपि ।।७६५॥ ..
जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध में मन्द, अल्प और अतिवृष्टि तालाब, आदि जल के समूह. जल के उद्भव स्थान, जल के वहन स्थान - नदी, नाला, नहर आदि देश ग्राम आदि के जलाशय, जल से उत्पन्न हुए जन क्षय ये सारी वस्तुएं वरुण दैव और उनके सेवक से अज्ञात नही होता है । (७६४-७६५) .
अयं पाथः पतिरति, विख्यातः स्थूल दर्शिनाम् । पश्चिमाशापतिः पाशपाणिर्जलधिमन्दिर ।।७६६॥ ..
सामान्य लोक में यह वरुण देव ‘समुद्रपति' पश्चिमदिशा पति, पाशपाणि जलधि मंदिर आदि नाम से प्रसिद्ध है । (७६६)
कर्कोटकः कर्दमकोमुञ्जनश्च शङ्खपालकः । .. पुण्डुः पलाशमोदश्च जयो दधि मुखस्तथा ।।७६७॥ अयंपुलः काकरिकः, सर्वेऽप्येते सुधाभुजः । वरूणस्याधीश्वरस्य, भवन्त्यवत्प्रियाः ।।७६८॥ कर्कोटक, कर्दमक, अंजन, शंखपालक, पुंड्र, पलाशमोद जय दधिमुख, अयंपुल काक आदि ये सभी देवता वरुणाधीश को पुत्र के समान प्रिय होते हैं । (७६७-७६८) ककोर्टक आदि कौन होते हैं उसका परिचय देते हैं :
अनुवेलन्धरं नागावासः कर्कोटका चलः । ऐशान्यां लवणाब्धौ तत्स्वामी कर्कोटकः सुर ।।७६६॥