SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४२०) सौधर्मावतंसक एक विमान से दक्षिण दिशा में पूर्वोक्त प्रमाण वाला परशिष्ट नाम का विमान होता है, उसमें राज तेज से शोभाते यम महाराजा होता है जो निग्रह और अनुग्रह करने में समर्थ होने से धर्मराज रूप प्रख्यात हैं । (७७८-७७६) सामानिकादयो येऽस्य, तेषामपि च सेवकाः । ये प्रेत व्यन्तरा ये च, तेषामप्यनुजीविनः ॥७८०॥ तथाऽसुरकु मारश्च सर्वे नरकपालकाः । कान्दर्षिकाद्यस्ते सर्वे यमाज्ञावशवर्तिनः ।।७८१॥.. इस यमराज के सामनिक देवता उसके सेवक प्रेत-व्यंतर आदि देव और उसके भी सेवक असुर कुमार नरक पालक तथा कांदर्षिक आदि सर्व देवता यमराज के आज्ञानुवर्ती होते हैं । (७८०-७८१) जम्बूद्वीपदक्षिणाद्धे, डमरा कलहाश्च ये । . अत्यन्तोद्दाम संग्रामा, महापुरूषमृत्यवः ।।७८२॥ देशद्रङ्ग ग्रामकुलरोगाः ीषादिवेदनाः । यक्षभूतोपद्रवाश्च, ज्वरा एकाहिकादयः ॥७८३॥ कासश्वासाजीर्णपाण्डुशूलार्शः प्रमुखा रुजः । देशग्रामवंशमारिगोत्रप्राणिधनक्षयाः ॥७८४॥ इत्यादयो महोत्पाता, येऽनार्याः कष्टकारिणः । यमस्य तत्सेविनां वा, नाविज्ञाता भवन्ति ते ॥७८५॥ दक्षिणार्ध जम्बूद्वीप में डमर, कलह, अत्यन्त बड़े युद्ध महापुरुषों के मृत्यु . देश, द्रंग, गांव कुल के रोग, मस्तक आदि दर्द, यक्ष भूत का उपद्रव एकांतरादि ताप खांसी, श्वास, अजीर्ण, पांडुरोग, शूलरोग, मसा आदि रोग देश गांव, वंश में होने वाली महामारी, गोत्रीय जन, धन का क्षय आदि अनार्य और कष्ट कारक जो महाउपद्रव है, वह यम और यम के सेवकों की जानकारी से बाहर नहीं होता । (७८२-७८५) अम्बादयो ये पूर्वाक्ताः, परमाधार्मिकाः सुराः ।। भवन्त्यपत्यस्थानीयाः यमराजस्य ते प्रियाः ॥७८६॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy