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प्राचीनादि महावाता, ग्रामादिदहनादिकाः । जम्बूद्वीप दक्षिणार्द्धे, ये चोत्पातास्तथाविधाः ।।७७३॥ जनप्राणधनादीनां क्षयास्ते सोमभूभृताम् । तत्सेविनां वा देवानां नाविज्ञाता न चाश्रुताः ॥ ७७४ ॥
• आकाश में ग्रहो के होते दंडाकार, मुसलाकार, सींगोडाकार आदि आकार ग्रह संचार का गर्जारव गंधर्व नगर, उल्कापात, आकाश वृक्ष, दिशा का दाह धूल का उठाव आदि धुआं, इन्द्र धनुष, सूर्य चन्द्र के ग्रहण, पूर्व दिशा में महावायु, गांव आदि का जलना, अन्य भी इस प्रकार के उत्पात जम्बू द्वीप के दक्षिणार्ध में होता है। वह और लोक के प्राण- धन आदि का क्षय होता है वह सारा सोमराजा का और उनके तथा उनके सेवक देवताओं के जानकारी के बाहर नहीं होता, सुना बिना नहीं होता । (७७१-७७४)
विकालकोऽङ्गारकश्च, लोहिताक्षः शनैश्चरः । चन्द्र सूर्य शुक्रबुध बृहस्पतिविधुन्तुदाः ।।७७५॥ भवन्त्यपत्यस्थानीर्याः, सोमस्यैते दशापि हि । विकालेष्वादयः सर्वे, ग्रहा एव पुरोदिताः ।।७७६ ॥
विकालक, अंगारक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति और राहु ये विकालक और चन्द्र आदि दस ग्रह सोम के पुत्र स्थानीय गिने गये हैं। (७७५ ७७६)
पल्यो पमतृतीयांशयुक्तं पल्योपमस्थितिः ।
.. सोमराजः सुखं भुडक्ते, दिव्य नाट्यादिलालितः ।। ७७७॥
एक तृतीयांश युक्त एक पल्योपम के आयुष्य वाले सोमराज दिव्य नाटक
आदि से आनन्द करते सुख भोगते हैं । (७७७)
दक्षिणास्यां च सौधर्मावतंसक विमानतः । विमानं वरशिष्टाख्यमस्ति पूर्वोक्तमानयुक् ॥ ७७८॥
यमस्तत्र महाराजो, राजते राजतेजसा । धर्मराज इति ख्यातो निग्रहानुग्रहक्षमः ।।७७६॥