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________________ (४१७) तत्रोपपातशय्यायामुपपातसभान्तरे । उत्पद्यते सोमराजः, शेषं सर्वंतु पूर्ववत् ॥७६०॥ वहाँ यदि शक्र माराज का सौधर्मावतंसक विमान है उससे पूर्व दिशा में असंख्य योजन दूर सोम महाराज - पूर्व दिशा के दिग्पाल का अति निर्मल चारों तरफ इन्द्र महाराज के विमान समान संध्या प्रभ नामक विमान है तथा उपपात सभा में उपपात शैय्या ऊपर सोमराज उत्पन्न होता है शेष सारा वृत्तांत पूर्व के समान लेना चाहिए । (७५६-७६०) अधोभागे विमानस्य, सोमराजस्य राजते । जम्बूद्वीपसमा तिर्यग्लोके सोमाभिधापुरी ।।७६१॥ सोमराज के विमान के नीचे तिर्यंच लोक में आयाम विस्तार में जम्बूद्वीप के समान सोमा नाम की नगरी है । (७६१) प्रासाद परिपाट्योऽत्र, चतारः शेषमुक्तवत् । वैमानिक विमानार्द्धमानमत्रोच्चतादिकम् ॥७६२॥ यहाँ प्रासाद की चार श्रेणियाँ हैं शेष पहले कहे अनुसार समझना, ऊँचाई आदि वैमानिक विमान से अर्ध समझना । (७६२) . शेषाणं लोकपालानामप्येवं स्वस्वसंज्ञया । तिर्यग्लोके संजधान्यः, स्वविमानतले मताः ॥७६३॥ शेष लोकपाल की भी अपने-अपने नाम की राजधानी तिर्यंच लोक के अन्दर अपने विमान के नीचे कहा है । (७६३) सुधर्माद्याः सभास्त्वत्र न सन्तीति जिना जगुः । नेषां विमानोत्पन्नानामिहैताभिः प्रयोजनम् ॥७६४॥ यहाँ इस लोकपाल की राजधानी में सुधर्मा आदि सभा नही होती इस तरह जिनेश्वर भगवान ने कहा है । क्योंकि यहाँ उत्पन्न हुए लोकपाल देवों के सभा का प्रयोजन नही होता । (७६४) रोहिणी मदना चित्रा, सोमा चेत्यभिधानतः । चतस्त्रोऽग्रमहिष्योऽस्य स्युः सहस्त्रपरिच्छदाः ॥७६५॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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