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शैय्या ऊँची देदीप्यमान और सुखावह होती है मानो सुन्दर वर्ण अक्षरों वाले चार पादवाली गाथा न हो ! ऐसी दिखती है । (७५३-७५४)
ततः सपरिवाराभिः, प्राणप्रियाभिरष्टभिः । गन्धर्व नाट्यानीकाभ्यां, चानुयात: सुरेश्वरः ।।७५५॥ तत्रोपेत्यानेकरुपो, गाढमालिङ्गय ताः प्रियाः । दिव्यानपंचविधानकामभोगान् भुते यथासुखम् ।।७५६॥ .
उसके बाद परिवार सहित आठ प्राण प्रियाओं के साथ में गांधर्व-और नाटय सेना से युक्त इन्द्र महाराज वहाँ जाकर अनेक रूप करके उन प्रियाओं को गाढमय आलिंगन करके पांच प्रकार के दिव्य काम भोग को इच्छानुसार भोग करता है । (७५५-७५६)
तथाचसूत्रं - "जाहे णं भंते सक्के! देविंदे देवराया दिव्वाई भोगभोगई भुंजिउकामे भवइ से कहमिदाणिं पकरेइ ! गो० । ताहे चेवणं से सक्के दे० एगं : महं नेमिपडिरुवगं विउव्वति-त्यादि'' भगवती सूत्रे १४-६ । . श्री भगवती सूत्र के चौदहवें शतक छटे उद्देश में कहा है कि - हे भदंत ! जब देवों का इन्द्र, देवों का राजा शक्र महाराजा दिव्य भोंगों को भोगने की इच्छा करता है तब किस तरह करते हैं ? तब भगवन्त कहते हैं - हे गौतम ! वह देवेन्द्र एक नेमि प्रति रूपक चक्रकार बड़े महल को बनाता है इत्यादि पूर्व कहे अनुसार समझना ।
चत्वारोऽस्य लोकपालाश्चतुर्दिगधिकारिणः । . . तेषामपि विमानादिस्वरुपं किंचिदुच्चयते ।।७५७॥ .
इन्द्र महाराज के चार दिशा के अधिकारी चार लोकपाल होते हैं उनसे भी विमानादि का स्वरुप कुछ कहलाता है ।
विमानं तत्र शक्रस्य, यत्सौधर्मावतंसकम् । ... तस्मात् प्राच्यामसंख्येय योजनानामतिक्रमे ।।७५८ ॥ तत्र सोम महाराज विमान मति निमलम् । संध्याप्रभाख्यम् देवेन्द्र विमानाभं समन्ततः ।।७५६॥