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________________ ( xlvi ) सं० के विपर विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक. सं० सं० ६०३ तीन पर्षदा के देवों की संख्या ३६२ ६२२ आनत-प्राणत देवलोक का ३६६ तथा स्थिति | वर्णन (स्थान-प्रतर-नाम) . ६०४ सामानिक-अंगरक्षक देवों की ३६५/६२३ प्रतर वार,पंक्तिगत विमान ४०२ संख्या तथा स्थिति कितने है? ६०५ शक्ति तथा इन्द्र का आयुष्य- ३६७ | |६२४ १-२ प्रतर में त्रिकोण आदि । ४०३ विमान-अधिपत्य तथा संब विमानों की संख्या.. ' ६०६ यान-विमान ३-४ तक में त्रिकोण आदि ४०५ ६०७ सहस्त्रार देवलोक का वर्णन ३७० तथा सब विमानों की संख्या . . . (स्थान-प्रतर-नाम) . ६२६ सारे प्रतरों में त्रिकोण आदि । ४०६ ६०८ प्रतर वार पंक्तिगत विमान ३७२ तथा सब विमानों की संख्या - .. ६०६ प्रतर-प्रतर के त्रिकोण आदि ३७४६२७ विमानों के वर्ण का आधार ४१० तथा सब विमानों की संख्या ६२८ पृथ्वी पिंड़-विमान व उच्चत्व ४११ ६१० सारे प्रतरों के त्रिकोण आदि ३७७ | • के विषय में तथा पंक्तिगत विमानों की संख्या आनतेन्द्र का वर्णन (प्रतरवार ४१५ पुष्पावकीर्ण प्रतर के त्रिकोण ३७६ आयुष्य)'. ___प्राणत स्वर्ग के सम्बंध में . ४१७ आदि तथा सब विमानों की ६३१ प्रतरवार आयुष्य ४१६ संख्या देहमान .४२१ ६१२ प्रतर वार आयुष्य आहार तथा श्वासोच्छवास ४२४ . ६१३ जघन्य आयुष्य ६३४ मन से काम क्रीड़ा के विषय में ४२६ ६१४ देहमान ६१५ आहार तथा श्वासोच्छवास ३८५ ६३५ शुक्र पुद्गलों से देवियों की ४३१ तृप्ति ६१६ उपपात-च्यवन तथा विरह काल ३८८ | देवों का भोग संज्ञा का अल्प- ४३४ ६१७ सहस्त्रारेन्द्र का वर्णन (इन्द्र का३८६ बहुत्व विमान) अनुत्तर तक देवों की गति- ४३६ ६१८ तीन पर्षदा के देवों की संख्या ३६१ अगति तथा स्थिति दोनों स्वर्ग के उपपात- ... ४३६ ६१६ सामानिक तथा आत्मरक्षक च्यवन-विरह काल देवों की संख्या तथा स्थिति दोनों स्वर्ग के उपपात-अवधि ४४३ ६२० · शक्ति-आयुष्य-विमान ज्ञान के विषय में अधिपत्य के विषय में ६४० आरण-अच्युत दोनों स्वर्ग के ४४४ ६२१ यान-विमान ३६८ अवधि ज्ञान के विषय में
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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