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________________ (xiv) • सं० सं० | क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक | सं० । सं० ८५७ प्रथम पंतर के त्रिकोण आदि २५०/८७६ श्रावस्ती नगर में गमन ३०१ तथा सब विमानों की संख्या ८८० मिथ्यात्व का उदय ३०४ ८५८ २-३ प्रतर के त्रिकोण आदि तथा २५२ / ८८१ धमार्थी शिष्यों ने जमाली का ३०८ सब विमानों की संख्या त्याग किया ८५६ ४-५ प्रतर के त्रिकोण आदि चम्पा नगरी में आगमन ३१० तथा सब विमानों की संख्या 254 |८८३ इन्द्रभूति ने प्रश्न पूछे ३११ ८६० पाँचों प्रतर के त्रिकोण आदि २५६ ८८४ जमाली उत्तर देने में असमर्थ ३१४ तथा सब विमानों की संख्या रहा ८६१ पाँचों प्रतरो के पंक्तिगत- २५८/८८५ किल्विषिक रूप में उत्पन्न हुआ३१५ पुष्पावर्कीण विमानों की संख्या | |८८६ उत्सूत्र भाषियों का संसार भ्रमण ३१८ ८६२ विमानों का आधार-ऊँचाई - २६०८८७ महाशुक्र देव लोक का वर्णन ३२५ ८६३ प्रतरवार-आयुष्य ८८८ स्थान-प्रतर ३२५ ८६४ जघन्य स्थिति ८८६ प्रतरों के नाम तथा पंक्तिगत ३३० ८६५ देवों का देहमान . विमान ८६६ उपपात-च्यवन-विरह काल । १-२-३ प्रतरों के त्रिकोण ३३२ - ८६७ लांतकेन्द्र का वर्णन . २७३ आदि सब विमानों की संख्या . (इन्द्रक विमान-सामानिक देव) ८६१ चौथे चार प्रतरों के त्रिकोण ३३४ ८६८ तीनों पर्षदा के देवों का परिवार आदि तथा सब विमानों की संख्या तथा स्थिति पुष्पावकीर्णक तथा सब ३३७ ८६६ आत्म रक्षक देव विमानों की संख्या ६७० शक्ति-आयुष्य-विमान ८६३ आधार तथा देवों के वर्ण ३३६ - अधिपत्य पृथ्वी पिंड-विमान-उच्चत्व ३४० ....८७१ यान-विमान ८६५ प्रतरवार स्थिति ३४१ - ८७२ किल्विाषिक देवों का वर्णन |८६६ देहमान ३४४ (स्थिति-स्थान) ८६७ शब्दों से काम क्रीड़ा । किल्विषिक कौन जीव है। ८६८ गति-अगति ८७४ ८६६ उपपात-च्यवन-विरह काल ३५५ ८७५ किस कारण से यहाँ उत्पन्न हुए २८६६०० अवधि ज्ञान के विषय में । ८७६ चय होकर कहाँ जाते हैं । ६०१ देह की कान्ति के विषय में ३५७ ८७७ जमाली का वर्णन ६०२ महाशुक्रेन्द्र का वर्णन (इन्द्र ३६० ८७८ वैराग्ये दीक्षा ग्रहण २६७ का विमान) ३४८ २५३ ३५६ २६४
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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