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________________ (xliv) लोक क्र० विषय सं० । १३४ १३५ क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक | सं० सं० । सं० ८१३ प्रासादो के वर्ण ८३७ उनके तेरह नाम . १८६ ८१४ देवों के मुकुट-चिन्ह तथा |८३८ उन नामों की सार्थकता. १६२ लेश्या के विषय में | ८३६ कृष्णराजी का वर्णन .. ८१५ देवों की स्थिति (स्थान-सामान्य ज्ञान). ६६ ८१६ प्रतरवार आयुष्य चारों दिशाओं की कृष्ण राजी १६८ ८१७ ऊँचाई १३७ कई दिशा में लम्बी पहुंचती है . . . ८१८ आहार तथा श्वासोच्छवास. १४० ___ कई कृष्ण राजी कितनी पुरातन २०१ ८१६ उनके भोग विलास के विषय में १४१ ८२० देवों की गति-आगति १४६ ८४२ इन कृष्ण राजियों का गठन- २०३ ८२१ उपपात-च्यवन-विरहकाल १४८ आकार ८२२ अवधिज्ञान का विषय १४६ इनका आकृति विस्तार २०६ ८२३ ब्रह्मदेव का वर्णन (सामाजिक १५१ |८४४ तमस्काय समान राजी का २०८ देवों की संख्या-स्थिति) अमुक स्वरूप ८२४ तीन पर्षदा के देवों की स्थिति १५२ ८४५ इन कृष्ण राजियों के नाम २१२ तथा संख्या तथा सार्थकता ८२५ दूसरे देव तथा आत्म रक्षक देव १५५ | | ८४६ लोकान्तिक देवों का वर्णन २१७ ८२६ शक्ति-आयुष्य-विमान तथा १५८ (कृष्णराज की परक्रिमाये आठ आधिपत्य लोकान्तिक विमान) ८२७ यान-विमान १६० ८२८ तमस्काय का स्वरूप १६१ 1८४७ मध्यम-नौवा विमान .. २२६ (लोकान्तिक देव कहाँ रहते हैं) ८४८ नौ लोकान्तिक देवों के नाम २३० ८२६ ये तमस्काय कहाँ से प्रगट १६२ | ८४६ लोकान्तिक देवों के कार्य २३२ होते है ? ८५० उन देवों के परिवार २३६ ८३० ऊँचाई तथा आकार १६८ |८५१ अव्याबाध देवों की शक्ति २४१ ८३१ कहाँ रूकते है? १६३८५२ स्थिति तथा मोक्ष गमन .. २४३ ८३२ नीचे-बीच में आकार-विस्तार १७१ | ८५३ मोक्ष गमन के विषय में मतान्तर २४४ ८३३ तमस्काय कोपार करने की विधि१७७/८५४ लान्तक देवों का वर्णन २४५ ८३४ बिजली-मेघ-वृष्टि आदि देवों १८० (स्थान तथा प्रतर) विकर्म ८५५ प्रतरों के इन्द्रक विमानों के नाम २४७ ८३५ उनमें क्या-क्या नहीं है १८५/८५६ प्रतर-प्रतर में पंक्ति विमान २४६ ८३६ उनकी भंयकरता के विषय में १८७ कितने?
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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