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लोक
क्र०
विषय
सं० ।
१३४
१३५
क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक | सं०
सं० । सं० ८१३ प्रासादो के वर्ण
८३७ उनके तेरह नाम . १८६ ८१४ देवों के मुकुट-चिन्ह तथा |८३८ उन नामों की सार्थकता. १६२ लेश्या के विषय में
| ८३६ कृष्णराजी का वर्णन .. ८१५ देवों की स्थिति
(स्थान-सामान्य ज्ञान). ६६ ८१६ प्रतरवार आयुष्य
चारों दिशाओं की कृष्ण राजी १६८ ८१७ ऊँचाई
१३७
कई दिशा में लम्बी पहुंचती है . . . ८१८ आहार तथा श्वासोच्छवास. १४०
___ कई कृष्ण राजी कितनी पुरातन २०१ ८१६ उनके भोग विलास के विषय में १४१ ८२० देवों की गति-आगति
१४६
८४२ इन कृष्ण राजियों का गठन- २०३ ८२१ उपपात-च्यवन-विरहकाल १४८
आकार ८२२ अवधिज्ञान का विषय १४६
इनका आकृति विस्तार २०६ ८२३ ब्रह्मदेव का वर्णन (सामाजिक १५१
|८४४ तमस्काय समान राजी का २०८ देवों की संख्या-स्थिति)
अमुक स्वरूप ८२४ तीन पर्षदा के देवों की स्थिति १५२
८४५ इन कृष्ण राजियों के नाम २१२ तथा संख्या
तथा सार्थकता ८२५ दूसरे देव तथा आत्म रक्षक देव १५५ |
| ८४६ लोकान्तिक देवों का वर्णन २१७ ८२६ शक्ति-आयुष्य-विमान तथा १५८
(कृष्णराज की परक्रिमाये आठ आधिपत्य
लोकान्तिक विमान) ८२७ यान-विमान
१६० ८२८ तमस्काय का स्वरूप १६१
1८४७ मध्यम-नौवा विमान .. २२६ (लोकान्तिक देव कहाँ रहते हैं)
८४८ नौ लोकान्तिक देवों के नाम २३० ८२६ ये तमस्काय कहाँ से प्रगट १६२
| ८४६ लोकान्तिक देवों के कार्य २३२ होते है ?
८५० उन देवों के परिवार २३६ ८३० ऊँचाई तथा आकार १६८
|८५१ अव्याबाध देवों की शक्ति २४१ ८३१ कहाँ रूकते है?
१६३८५२ स्थिति तथा मोक्ष गमन .. २४३ ८३२ नीचे-बीच में आकार-विस्तार १७१
| ८५३ मोक्ष गमन के विषय में मतान्तर २४४ ८३३ तमस्काय कोपार करने की विधि१७७/८५४ लान्तक देवों का वर्णन २४५ ८३४ बिजली-मेघ-वृष्टि आदि देवों १८० (स्थान तथा प्रतर) विकर्म
८५५ प्रतरों के इन्द्रक विमानों के नाम २४७ ८३५ उनमें क्या-क्या नहीं है १८५/८५६ प्रतर-प्रतर में पंक्ति विमान २४६ ८३६ उनकी भंयकरता के विषय में १८७ कितने?