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जाताः शक्रमहिष्योऽष्टौ, सप्तपल्योपमायुषः । सिंहासनेषु कीडन्ति, पद्माख्यादिषु सोत्सवम् ।।७४४॥
वर्तमान कालिक पट्टरानी के पूर्वजन्म इस प्रकार हैं - आठ में से दो श्रावस्ती नगरी की, दो हस्तिनापुर की, दो कांपिल्यपुर की और दो साकेतपुर नगर की थी। बड़ी उम्र में कुमारी अवस्था में श्री पार्श्वनाथ परमात्मा के पास में दीक्षा स्वीकार करके पुष्प चूला साध्वी जी की शिष्या बनी थी । अच्छी तरह व्रतों का पालन करके अन्तिम समय में संलेखना करके मृत्यु प्राप्त कर पद्मावंतसकादि विमान में उत्पन्न हुई थी और इन्द्र महाराज की आठ पट्टरानियाँ हुईं हैं और उनका आयुष्य सात पल्योपम का है । पद्म नामक सिंहासन पर उत्साह आनन्दपूर्वक क्रीड़ा करती हैं । (७४१-७४४)
एकैस्यास्तथै तस्याः परिवारे सुराङ्गना । . स्वतुल्यरुपालङ्काराः, सहस्त्राण्येव षोडष ।।७४५॥ ". षोडशैताः सहस्त्राणि, विकुर्वन्ति नवा अपि । एवं च सपरिवाराः, पल्यो भवन्ति वज्रिणः ।।७४६॥
प्रत्येक पट्टरानी का परिवार में अपने समान ही रूप और अलंकार से शोभायमान सोलह हजार देवियाँ होती हैं । ये सोलह हजार देवियाँ नया वैक्रिय रुप करे अथवा न भी करे । इस तरह से परिवार सहित अग्र महिषी शक्र महाराज की पत्नियाँ होती हैं । (७४५-७४६) .
अष्टाविंशत्या सहस्त्रैरधिकं लक्षमेव ताः । .. . भुङ्क्ते तावन्ति रुपाणि, कृत्वेन्द्रोऽप्येकहेलया ।।७४७॥
ये सभी पत्नी देवियों को एक लाख और अट्ठाईस हजार रूप बनाकर इन्द्र महाराज एक साथ में भोग करता है । (७४७)
तथाहुः- 'सक्कस्सणं भंते !देविंदस्स पुच्छाअन्जो !अट्ठअग्गमहिसिओ प०' इत्यादि भगवती सूत्रे १०-५ । - श्री भगवती सूत्र के दसवें शतक के पाँचवे उद्देश में कहा है कि * हे भंदत! देवों के इन्द्र शक्र महाराज सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में आठ अग्र महिषियों ने कहा है । इत्यादि
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