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इन्द्र के सामनिक देवता और त्रायस्त्रिंशक देवताओं की भी वैक्रिय रूप शक्ति इस तरह से कही है । (७३६) ।
लोकपालाग्रपत्नीनामपि वैकि यगोचरा । तुल्यैव शक्तिस्त्रिर्यक् तु, संख्येया द्वीपवार्द्धयः ।।७३७॥
लोकपाल और इन्द्र महाराज की पटरानियों की भी वैक्रिय शक्ति इतनी है कि तीर्छा असंख्यात द्वीप समुद्र अनुसार समझना । (७३७)
शक्तेविषय एवायं न त्वेषं कोऽपि कर्हिचिंत् । चक्रे विकुंवणां नो वा, करोति न करिष्यति ।।७३८॥
यहाँ जो वर्णन करने में आया है वह केवल वैक्रिय शक्ति का विषय ही बताया है, शेष तो कभी किसी ने इस तरह रचना की नही है और करेंगे भी नहीं । (७३८)
शक्रस्याग्रमहिष्यस्तु भवन्त्यष्टौ गुणोत्तमाः । रुपलावण्यशालिन्यः प्रोक्तास्ता नामतस्त्विमाः ।।७३६॥ पद्या १ शिवा २ शच्य ३ थापे ४ रमलाख्या ५ तथाप्सराः ६ । ततोनवमिका ७ रोहिण्यभिदा ८ स्यादिहाष्टमी ।।७४०॥
शक्रमहाराज की गुणवन्ती और रूप लावण्य से शोभायमान आठ पट्टरानियाँ होती हैं उनके नाम अनुक्रम से इस प्रकार हैं - १- पद्मावती, २- शिवा, ३-शचि, ४-अंजू, ५- अमला, ६-अप्सरा, ७-नवमिका और ८- रोहिणी । (७३६-७४०)
साम्प्रतीनामासां पूर्व भवस्त्वेवं - द्वे श्रावस्तीनिवासन्यौ, हस्तिनागपुरालये । द्वे द्वे काम्पिल्यपुरगे, द्वे साकेत पुरालये ॥७४१ । एताः पद्माख्यपितृका विजयाभिधमातृका । बृहत्कुमार्योऽष्टप्यात्तप्रव्रज्याः पार्श्वसन्निधौ ।।७४२ ।। पुष्पचूलार्यिका शिष्याः, पक्षं संलिख्य सुब्रताः । मृत्वोत्पन्ना विमानेषु, पद्मावतंसकादिषु ।।७४३॥