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वैमानिक देव देवियों के समूह द्वारा चारों तरफ से ढूंस-ठूस कर पूर्ण करना चाहे तो असंख्य द्वीप समुद्र को भर सकते हैं । (७३२-७३३)
तथाहुः-"सक्केणं देविंदे देवरायाजावकेवतियंचणंपभूविउव्वित्तए! एवं जहेव चमरस्स, नवरं दो केवलकप्पेजंबुद्दीवे, बवसेसंतं चेव" भगवती सूत्रे।
श्री भगवती सूत्र में कहा है कि "देवों के इन्द्र, देवों के राजा इन्द्र महाराज कितने रूप को रचना करने में समर्थ हैं । उसका उत्तर चमरेन्द्र के वर्णन अनुसार जानना, केवल विशेष इतना ही है । शेष सब उसके अनुसार ही है ।'' . अयंभावः- जम्बुद्वीपावधिक्षेत्रं यावच्छकविमानतः । ...
तावद्विगुणितं भर्तुमीष्टे रुपैर्विकुर्वितैः ॥७३४॥
शक्र महाराज के विमान अनुसार जो जम्बू द्वीप क्षेत्र है उससे दोगुनम अपने रचना से रुप के द्वारा भर सकता है । (७३४) ,
तथाच देवेन्द्रस्तवे चमरेन्द्रमाश्रित्य - . जाव य जम्बुद्दीवो जाव य चमरस्स चमरचंचाओ। असुरेहिं असुरकन्नाहिं अस्थिविसओ भरेउंजे ७३४ ॥
श्री देवेन्द्र स्तव में चमरेन्द्र के आश्रित से कहा है कि-जितना बड़ा जम्बूद्वीप है अथवा जितनी चमरेन्द्र की चमरचंचा नगरी है उतने सुर और असुरकन्या द्वारा रचना से रूप द्वारा भर सकते हैं । (७३४अ)
न पंचमाङ्गवृत्तौ तु सूत्रमेतत्सफुटीकृतम् । तिर्यकक्षेत्रस्यात्र पृथगुक्तत्वाद्भाव्यते त्विति ।।१३५॥ तदत्र तत्वं बहुश्रुता विदन्ति
श्री भगवती सूत्र इस सूत्र की स्पष्टता नही की क्योंकि तिर्यंच क्षेत्र की बात अलग कहने के कारण सूत्र को स्पष्ट नहीं करने का संभवित है । तत्व तो बहुश्रत ज्ञानी ही जाने । (७३५)
सामानिकानामेतस्य, त्रायस्त्रिंशकनाकिनाम् । . . कर्तुं वैक्रियरुपाणि, शक्तिरेवं प्ररुपिता ॥७३६॥