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________________ (४०६) मन्वध्वन्येव बजेण कथमेष न ताडितः । बज़वच्चमरेन्द्रोऽपि नाग्राहिवज्रिणा कथम् ॥१६॥ नरादिभिस्त्वधः क्षिप्तं वस्त्वादातुं न शक्यते । सुरैः किं शक्यते येन बज्रमग्राहि बज्रिणा ॥१७॥ प्रश्न यह है कि - रास्ते में ही वज्र ने चमरेन्द्र को क्यों नहीं मारा? और इसका दूसरा प्रश्न यह है कि इन्द्र महाराज ने जैसे वज्र को पकड़ कर रखा था वैसे चमरेन्द्र को भी क्यों नहीं पकड़ा? तीसरा प्रश्न यह है कि जैसे मनुष्य द्वारा नीचे फेंकी वस्तु ग्रहण नहीं कर सकता है तो क्या देवता ग्रहण कर सकता है ? कि जिससे इन्द्र महाराज ने वज्र को ग्रहण किया था । (७१६-७१७) अत्रोच्यते - अधोनिपतने शीघगतयोऽसुरनाकिनः । ऊर्ध्वमुत्पतने मंदगत्यश्च स्वभावतः ॥७१८॥ वैमानिका पुनरध: पतने मंदगामिनः । ऊर्ध्वंमुत्पतने शीघगतयश्च स्वभावतः ।।७१६॥ : बज़ मप्यूर्ध्वगमने शीघं मन्दमधोगमे । __ असुरेन्द्राद्वज्रिणस्तु मन्दगामि द्विधाप्यदः ।।७२०।। इसका उत्तर देते हैं - असुर देवता स्वाभाव से ही नीचे जाने में शीघ्र गति वाला होता है और ऊपर जाने में मंद गति वाला होता हैं और वैमानिक देव स्वभाव से नीचे जाने में मंद गति वाला होता है और ऊपर जाने में शीघ्र गति वाला होता हैं। इसी तरह से वज्र भी ऊर्ध्व गमन में शीघ्र गति वाला होता है और अधोगमन में मंद गति वाला होता है अतः चमरेन्द्र और सौधर्मेन्द्र दोनो से दोनों रूप में यह वज्र मंदगामी है । (७१८-७२०) . यावत्क्षेत्रं शक्र एक समयेनोर्ध्वमुत्पतेत् । वजं द्वाभ्यां तावदेव, चमरः समयैस्त्रिभिः ।।७२१॥ अधः पुनावदेक समये नासुरेश्वरः । तावद् द्वाभ्यां हरिर्वनं त्रिभिर्निपतति क्षणैः ॥७२२॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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