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.. तथा 'महामेघा' नामक देवता इन्द्र महाराजा के अधीन होने से और उनके वे स्वामी होने से इन्द्र महाराज 'मघवान' रूप में कहलाते हैं । (७००)
तथोचुः- मघवंतिमधा-महामेधावशे सन्तस्यमधवान्,कल्पसूत्रवत्तौ।
श्री कल्पसूत्र की टीका में कहा है कि - मघव अतः मघा यानि महामेघा जिसके वश इससे वह मघवान कहलाते हैं ।
तथा हि मेघा द्वि विधा एके वर्षत्तुभाविनः ।. स्वाभाविकास्तदपरे, स्युर्देवतानुभावजाः ।।७०१॥
मेघ दो प्रकार के होते हैं । १- वर्षा ऋतु में होने वाले स्वाभाविक मेघ तथा २- अन्य देवता के प्रभाव से होने वाले मेघ होते हैं । (७०१) . ..
तत्र शक्रो यदि वृष्टिं, कर्तुमिच्छेन्निजेच्छया । आज्ञापयति गोर्वाणांस्तदाऽभयत्रपार्षदान् ॥७०२।। ते मध्यपार्षदांस्तेऽपि, बाह्यास्ते बाह्यबाह्यकान् । . . तेऽप्याभियोगिकांस्तेऽपि,ब्रुवते वृष्टिकायिकान् ।।७०३॥
उसमें इन्द्र महाराज की जब स्वयं इच्छा से वृष्टि करने की इच्छा हो तब अभ्यंतर पर्षदा के देवों को आज्ञा करते हैं और उसं अभ्यंतर पर्षदा के देव मध्यम पर्षदा के देवों को आज्ञा करते हैं और वे देवता बाह्य पर्षदा के देवों को आज्ञा करते हैं, और वह बाह्य पर्षदा के देवता बाह्य अभियौगिक देवों को आज्ञा करते हैं
और वे अभियौगिक देव वृष्टि करने वाले देवताओं को आज्ञा करते हैं । (७०२-७०३)
ततस्तेकुर्वते वृष्टिं हृष्टाः शनानुशिष्टिवः । एवमन्येऽपिकुर्वन्ति, सुराश्चतुर्विधा अपि ७०४॥ जन्मदीक्षाज्ञानमुक्ति महेषु श्रीमद् ह ताम् । भक्त्युद्रेकादतिशयोद्भावनाय प्रमोदतः ।।७०५॥
उसके बाद इन्द्र महाराज की आज्ञा होने से खुश हुए वे देवता वृष्टि करते हैं । इस तरह से अन्य भी चार प्रकार के देवता - भवनपति व्यंतर ज्योतिषी शेष वैमानिक इन्द्र श्री अरिहंत परमात्मा के जन्म, दीक्षा केवल ज्ञान और मोक्ष के