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________________ (४०४) ईशानाद्यच्युतान्तानामेवं सर्वबिडौजसाम् ।। पत्ति सैन्यपतेः कच्छाः सप्त सप्त भवन्ति हि ॥६६०॥ ईशान देवलोक से अच्युत देवलोक तक के सर्व इन्द्रों की पदाति सेना की सात-सात 'कच्छा' होती है । (६६०) देवास्तत्राद्यकच्छायां, स्वेन्द्रसामानिकै समाः । द्वितीयाद्याः षडन्याश्च द्विना द्विना यथोत्तरम् ।।६६१॥ . इन सात कच्छाओं में से पहली कच्छा में देव अपने देवलोक के इन्द्र के सामानिक देवों की संख्या अनुसार होती है । दूसरी से सात तक की छः कच्छा में क्रमशः देवों की संख्या दोगुनी-दोगुनी समझना । (६६१) यथासी धर्मेन्द्र हरिनैगमेषिचभूपतेः ।। स्यादाद्यकच्छा चतुरशीति देव सहस्रिका ।।६६२॥ . जैसे कि सौ धर्मेन्द्र के हरिनैगमेषी सेनापति है उनकी प्रथम कच्छा के. चौरासी हजार देवता होते हैं (६६२) . . . तथायानविमानाधिकारी पालक निर्जरः । सदाशक नियोमेच्छुरास्ते विरचिताञ्जलिः ।।६६३॥ तथा अब वाहन रूप विमान के अधिकारी पालक नामक देव है और वे संघ इन्द्र महाराज की आज्ञा का इच्छुक बनकर हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं । (६६३) यदेन्द्रो जिनजन्माधुत्सवेषु गन्तुिमिच्छति । तदावादयते घण्टी सुघोषानैगमेषिणा ॥६६४॥ जब इन्द्र महाराज की श्री जिनेश्वर भगवंत के जन्म कल्याण आदि उत्सव । में जाने की इच्छा होती है उस समय इन्द्र महाराजा नैगमेषी देव द्वारा 'सुधोषा' घंटा बजवाते हैं। (६६४) वादीतायाममष्यां च घण्टाः सर्वविमानगाः । शब्दायन्ते समं यन्त्रप्रयोगप्रेरिताइव ।।६६५।। यह घण्टा बजाने के बाद सर्व विमान में रहे घंटे एक साथ में यन्त्र प्रयोग से प्रेरित हो इस तरह बजने लगते हैं । (६६५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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