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पादात्ये शस्तत्र हरिनैगमेषीति विश्रुतः । शक्रदूतोऽति चतुरो नियुक्तः सर्वकर्मसु ॥ ६८४ ॥
इन सेनापतियों में पदाति सेना के सेनापति हरिनैगमेषी रूप में प्रसिद्ध है
जो अति चतुर और सर्व कार्य में नियुक्त शक्र इति रुप है । (६८४)
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योऽसौ कार्य विशेषेण देवराजानुशासनात् ।
कृत्वामङ्क्षु त्वचश्छेदं रोमरन्ध्रर्नखांकुरैः ||६८५ ॥
संहर्तुमीष्टे स्त्रीगर्भं न च तासां मनागपि । पीडा भवेन्नगर्भस्याप्यसुखं किंचिदुद्भवेत ॥ ६८६ ॥
वह हरिनैगमेषी देव इस तरह कुशल शक्ति धारण करता है देवेन्द्र की आज्ञा से विशिष्ट कार्य के समय में स्त्री के गर्भ का संहरण करने में समर्थ होता है, स्त्री को सहज भी पीड़ा न हो और गर्भ को जरा भी दुःख न हो उस तरह से संहरण कर सकते है । (६८५-६८६)
तत्रगर्भाशयाद्भर्गाशंशये यौनो च योनितः ।
योनेगर्भाशये गर्भाशयाद्योनाविति क्रमात् ॥६८७॥
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आकर्षणामोचनाभ्याम् चतुर्भङ्गयत्र संभवेत । तृतीयेनैव भङ्गेन गर्भ हरति नापरैः ||६८८॥ इदंचार्थतः पंचमागे
यहां १ - गर्भाशय में से गर्भाशय में २- योनि से योनि में ३- योनि से गर्भाशय में और गर्भाशय से योनि में निकालना और रखने की चतुभंगी होती है, उसमें से तीसरे प्रकार की विभाग से गर्भ का अपहरण करता है अन्य विभाग नही है । यह बात श्री भगवती सूत्र में कही है । (६८७-६८८)
पत्तिसैन्यपतेरस्य कच्छाः सप्त प्रकीर्तिताः । कच्छा शब्देन च स्वाज्ञावशवर्त्तिसुरव्रजः ॥६८६॥
पदाति सैन्य के अधिपति हरिनैगमेषी देवों की सात कच्छा कही है, कच्छा शब्द का अर्थ - अपनी आज्ञानुवर्ती देवों का समूह समझना । (६८६)