________________
(४०२ )
स्वरमाधुर्यवर्याणां सैन्यमातोद्यभारिणाम् ।
गन्धर्व देवदेवीनां सप्तमं सेवते हरिम् ॥६७८ ॥
"
"
स्वर की मधुरता से श्रेष्ठ वाणी को धारण करने वाले गंधर्व देव - देवियों का
सातवां सैन्य इन्द्र महाराज की सेवा करता है । (६७८)
एतत्सैन्यद्वयं चातिचतुरं गीतताण्डवै ।
अविश्रमं प्रयुज्जानमुपभोगाय वज्रिणः ।।६७६ ॥ -
ये दोनो सैन्य गीत और नृत्य में अति चतुर होते हैं और इन्द्र महाराज के उपयोग में हमेशा लगे रहते हैं । (६७६)
सप्तानामप्यथैतेषां सैन्यानां सप्त नायकाः ।
सदा सन्निहताः शक्रं विनयात् पर्युपासते ||६८० ॥
इन सात सैन्यों के सात सेनापति हमेशा इन्द्र महाराज के नजदीक रहकर विनय पूर्वक सेवा करते हैं । (६८०)
ते चेवं नामतोवायु १ एरावतश्च २ माठर. ३
स्याद्दामर्द्धि ४ हरिनैगमेषी ५ श्वेतश्च ६ तुम्बरुः ७ ॥ ६८१ ॥
इन सेनापतियों के नाम अनुक्रम से इस प्रकार है १- वायु, २- ऐरावत, ३- माठर, ४- दामर्द्धि, ५- हरिनैगमेषी, ६- श्वेत और तुंबरू । (६८१ )
सप्तापि सेनापतयः स्युरे तैरेव नामभिः ।
तृतीयस्य पंचमस्य सप्तमस्य सुरेशितुः ।।६८२ ॥
तीसरे, पाँचवे और सातवें देवलोक के इन्द्र महाराज के सेनापतियों के
नाम भी इसी प्रकार से आते हैं । (६८२)
अङ्गीकृत्य द्वादशेन्द्रानानतारण्योरपि ।
एतन्नामानं एवामी, स्थानाङ्गे कथिता जिनैः ||६८३ ॥
श्री जिनेश्वर भगवन्तों ने स्थानांग सूत्र के अन्दर बारह देवलोक के आश्रित आनत और आरण देवलोक के इन्द्र महाराज के सेना पतियों के नाम इसी प्रकार से कहा है । (६८३)