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तथासप्तास्य सैन्यानि तत्र तादृक् प्रयोजनात् । नृत्यञ्जात्योत्तुङ्गचङ्गतुरङ्गकारधारिणाम् ॥६७२॥ शूरणां युद्धसन्नद्धशस्त्रावरणशालिनाम् । निर्जराणां निकुरम्बं हमसैन्यमिति स्मृतम् ॥६७३॥
इन्द्र महाराजा को सात सैन्य होते हैं उसमें प्रथम अश्वसेना कही है जो कि उस प्रकार के प्रयोजन से नाचते हैं इस तरह जातिवंत ऊँचे और सुन्दर घोड़े के आकार को धारण करने वाले शूरवीर युद्ध के लिए तैयार रहते वख्तर और शस्त्र से शोभते देवता समूह रूप है । (६७२-६७३)
एवं गजानाम् कटकं रथानामपि भास्वताम् । विविधायुधपूर्णामश्वरुपमरु धुजाम् ॥६७४ ॥
इसी तरह अश्व सेना के समान दूारी गजसेना भी होती है और विविध आयुधो से पूर्ण और देदीप्ययान ऐसी तीसरी रथ सेना भी होती है उसमें अश्व रूपी देव जोड़े हुए होते हैं । (६७४)
_ तथा वृषभदेवानां, सैन्यमुच्छङ्गिणां युधे । ..: उद्भटानां पदातीनां सैन्यमुग्रभुजोष्मणाम् ॥६७५॥
उसके बाद युद्ध में ऊंचे शृंग करने वाले चौथे वृषभ देवों की सेना होती है तथा युद्ध में प्रचंड भुजाबली उद्भट पाँचवी पैदल की सेना है । (६७५)
एतानि पंच सैन्यानि गतदैन्यानि वज्रिणम् ।
सेवन्ते युद्धसञ्जानि नियोगेच्छूनि सन्निधौ ।।६७६ ॥ ...'आज्ञा के इन्छुक युद्ध में तैयार, दीनता रहित ये पाँच सैन्य इन्द्र महाराज के सान्निध्य में सेवा करते हैं । (६७६)
शुद्धाङ्गनृत्यवैदग्ध्यशालिनां गुणमालिनाम् ।
नटानां देवदेवीनां, षष्टं सैन्य भजत्यमुम् ॥६७७॥ - शुद्ध अंग नृत्य की कौशल्य से शोभते गुणवान नटकार देव-देखियों का छठा सैन्य इन्द्र महाराज की सेवा करते हैं । (६७७)
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