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________________ (३६८) समानाः सुरनाथेन, सामानिकास्ततः श्रुताः । अमात्यपितृगुर्वादिवत्सम्मान्या बिडौजसः ।।६५६ ॥ स्वामित्वेन प्रतिपन्ना, एतेऽपि सुरनायकम् । भवन्ति वत्सलाः सर्वकायेषु बान्धाग इव ॥६५७॥ इस इन्द्र को सामानिक देवता चौरासी हजार (८४०००) होते हैं । वे इन्द्रत्व बिना कान्ति, आयुष्य और वैभवादि से इन्द्र महाराजा समान होते हैं इससे ही उनको सामनिक देव कहलाते हैं और वे सामनिक देव इन्द्र महाराज के लिये मन्त्री, पिता और गुरु आदि के समान सम्माननीय होते हैं । इन्द्र महाराज को स्वामी रूप में स्वीकार कर ये सामनिक देव उनके सर्व कार्यों में बंधन के समान वात्सल्य वाले होते हैं । (६५५-६५७) त्रायस्त्रिंशास्त्रयस्त्रिशद्देवाः स्युमन्त्रिसन्निभाः । सदा राज्य भारचिन्ताकर्तारः शक्रसंमताः ॥६५८॥ पुरोहिता इव हिताः, शान्तिकपौष्टिकादिकम् । . कुर्वन्तोऽवसरे शक्रं, प्रणियन्ति महाधियः ।।६५६ ॥ दोगुन्दकापराह्वाना, महासौख्याञ्चिता अमी । निर्दशनतयोच्यन्ते, श्रुतेऽतिसुखशालिनाम् ॥६६०॥ तेतीस त्राय स्त्रिश देव होते हैं कि जो इन्द्र के मन्त्री समान होते हैं और वे राज्य के भार की चिन्ता को करने वाले - शक्र समंत होते हैं और समय पर शान्तिक और पौष्टिक कर्म करते वे इन्द्र महाराज को खुश करते हैं ये त्रायस्त्रिंश देव (दोगुंदक) ऐसा दूसरा नाम धारण करने वाले और महा सुखशाली होते हैं । शास्त्र में अति सुखशाली जन के दृष्टान्त रूप में उनका उल्लेख किया जाता है । (६५८-६६०) तथोक्तं मृगापुत्रीयाध्ययने - नंदणे सौ उ पासाए, कीलए सह इथिए । देवो दोगुंदगो चेव, निच्चं मुइयमाणसो ॥६६१॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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