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________________ (३६७) का नाम चंडा है, उस पर्षदा में चौदह हजार देव और छ: सौ देवियाँ होती हैं । और बाह्य पर्षदा का नाम जाता है उसमें सोलह हजार देव और पाँच सौ देवियाँ होती हैं। अब तीनों पर्षदाओं का देवों का आयुष्य क्रमशः कहा जाता है । (६४६-६४६) अन्तः पर्षदि देवानां, पंचपल्योपमात्मिका । स्थितिस्तथात्र देवीनां पल्योपमत्रयं भवेत ।।६५०॥ अभ्यंतर पर्षदाओं के देवों का आयुष्य पाँच पल्योपम और देवियों का आयुष्य तीन पल्योपम होता है । (६५०) . पल्योपमानी चत्वारि, मध्यपर्षदि नाकिनाम् । स्थितिर्देवीनरं तु पल्योपमद्वयं भवेदिह ।।६५१ ॥ मध्यम पर्षदा के देवों का आयुष्य चार पल्योपम का और देवियों का आयुष्य दो पल्योपम होता है । (६५१) बाह्यपर्षदि देवानां, पल्योपमत्रयं स्थितिः । एकं पल्योपमं चात्र देवीनां कथिता स्थिति ।।६५२॥ . बाह्य पर्षदा के देवों का आयुष्य चार पल्योपम का और देवियों का आयुष्य एक पल्योपम.होता है । (६५२) __ . अस्यैवं सामानिकानां, बायस्त्रिंशकनाकिनाम् । लोकपालानां तथाग्रमहिषीणामपि ध्रुवम् ।।६५३॥ भवन्ति पर्षदस्तिस्त्रः समिताद्या यथाक्रमम् । - अच्युतान्तेन्द्रसामानिकादीनामेवमेव ताः ।।६५४॥ इतिस्थानाङ्ग सूत्रे ।। इस तरह से इन्द्र महाराज के सामयिक देव, त्रायस्त्रिश देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की भी समतादि अनुक्रम से तीन-तीन पर्षदा होती है । इस तरह अच्युतेन्द्र तक के इन्द्र तथा सामानिकादि देवों को भी तीन-तीन पर्षदा होती है । यह सारी बात स्थानांग सूत्र में कहा है । (६५३-६५४) सहस्राण्यस्य चतुरशीतिः सामानिकाः सुराः । ते चेन्द्रत्वं बिना शेषैः, कान्त्यायुर्वैभवादिभिः ।।६५५॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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