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का नाम चंडा है, उस पर्षदा में चौदह हजार देव और छ: सौ देवियाँ होती हैं । और बाह्य पर्षदा का नाम जाता है उसमें सोलह हजार देव और पाँच सौ देवियाँ होती हैं। अब तीनों पर्षदाओं का देवों का आयुष्य क्रमशः कहा जाता है । (६४६-६४६)
अन्तः पर्षदि देवानां, पंचपल्योपमात्मिका । स्थितिस्तथात्र देवीनां पल्योपमत्रयं भवेत ।।६५०॥
अभ्यंतर पर्षदाओं के देवों का आयुष्य पाँच पल्योपम और देवियों का आयुष्य तीन पल्योपम होता है । (६५०) .
पल्योपमानी चत्वारि, मध्यपर्षदि नाकिनाम् । स्थितिर्देवीनरं तु पल्योपमद्वयं भवेदिह ।।६५१ ॥
मध्यम पर्षदा के देवों का आयुष्य चार पल्योपम का और देवियों का आयुष्य दो पल्योपम होता है । (६५१)
बाह्यपर्षदि देवानां, पल्योपमत्रयं स्थितिः ।
एकं पल्योपमं चात्र देवीनां कथिता स्थिति ।।६५२॥ . बाह्य पर्षदा के देवों का आयुष्य चार पल्योपम का और देवियों का आयुष्य एक पल्योपम.होता है । (६५२) __ . अस्यैवं सामानिकानां, बायस्त्रिंशकनाकिनाम् ।
लोकपालानां तथाग्रमहिषीणामपि ध्रुवम् ।।६५३॥
भवन्ति पर्षदस्तिस्त्रः समिताद्या यथाक्रमम् । - अच्युतान्तेन्द्रसामानिकादीनामेवमेव ताः ।।६५४॥ इतिस्थानाङ्ग सूत्रे ।।
इस तरह से इन्द्र महाराज के सामयिक देव, त्रायस्त्रिश देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की भी समतादि अनुक्रम से तीन-तीन पर्षदा होती है । इस तरह अच्युतेन्द्र तक के इन्द्र तथा सामानिकादि देवों को भी तीन-तीन पर्षदा होती है । यह सारी बात स्थानांग सूत्र में कहा है । (६५३-६५४)
सहस्राण्यस्य चतुरशीतिः सामानिकाः सुराः । ते चेन्द्रत्वं बिना शेषैः, कान्त्यायुर्वैभवादिभिः ।।६५५॥